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Wednesday, June 24, 2020

काशी में करौंत की कथा ?

काशी में करौंत  की कथा 

शास्त्राविधि त्यागकर मनमाना आचरण करने यानि शास्त्रों में लिखी भक्ति विधि अनुसार साधना न करने से गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में लिखा है कि उस साधक को न तो सुख की प्राप्ति होती है, न भक्ति की शक्ति (सिद्धि) प्राप्त होती है, न उसकी गति(मुक्ति) होती है अर्थात् व्यर्थ प्रयत्न है। हिन्दू धर्म के धर्मगुरू जो साधना साधक समाज कोबताते हैं, वह शास्त्रा प्रमाणित नहीं है। जिस कारण से साधको को परमात्मा की ओर से कोईलाभ नहीं मिला जो भक्ति से अपेक्षित किया। फिर धर्मगुरूओं ने एक योजना बनाई कि।।

                             काशी करोंत  

            भगवान शिव का आदेश हुआ है कि जो काशी नगर में प्राण त्यागेगा, उसके लिए स्वर्ग का द्वार खुल जाएगा। वह बिना रोक-टोक के स्वर्ग चला जाएगा। जो मगहर नगर (गोरखपुरके पास उत्तरप्रदेश में) वर्तमान में जिला-संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) में है, उसमें मरेगा,वह नरक जाएगा या गधे का शरीर प्राप्त करेगा। गुरूजनों की प्रत्येक आज्ञा का पालन करना अनुयाईयों का परम धर्म माना गया है। इसलिए हिन्दू लोग अपने-अपने माता-पिताको आयु के अंतिम समय में काशी (बनारस) शहर में किराए पर मकान लेकर छोड़ने लगे।यह क्रिया धनी लोग अधिक करते थे। धर्मगुरूओं ने देखा कि जो यजमान काशी में रहनेलगे हैं, उनको अन्य गुरूजन भ्रमित करके अनुयाई बनाने लगे हैं। काशी, गया, हरिद्वार आदि-आदि धार्मिक स्थलों पर धर्मगुरूओं (ब्राह्मणों) ने अपना-अपना क्षेत्रा बाँट रखा है। यदिकोई गुरू अन्य गुरू के क्षेत्रा वाले यजमान का क्रियाकर्म कर देता है तो वे झगड़ा कर
              यदि कोई गुरू अन्य गुरू के क्षेत्रा वाले यजमान का क्रियाकर्म कर देता है तो वे झगड़ा कर देतेहैं। मारपीट तक की नौबत आ जाती है। वे कहते हैं कि हमारी तो यही खेती है, हमारा निर्वाह इसी पर निर्भर है। हमारी सीमा है। इसी कारण से काशी के शास्त्राविरूद्ध साधना कराने वाले ब्राह्मणों ने अपने यजमानों से कहा कि आप अपने  माता-पिता को हमारे घर रखो। जो खर्च आपका मकान के किराए में तथा खाने-पीने में होता है, वह हमें दक्षिणा रूपमें देते रहना। हम इनकी देखरेख करेंगे। इनको कथा भी सुनाया करेंगे। उनके परिवार वालों को यह सुझाव अति उत्तम लगा और ब्राह्मणों के घर अपने वृद्ध माता-पिता को छोड़ने लगे और ब्राह्मणों को खर्चे से अधिक दक्षिणा देने लगे। इस प्रकार एक ब्राह्मण के घर प्रारम्भ में चार या पाँच वृद्ध रहे। अच्छी व्यवस्था देखकर सबने अपने वृद्धों को काशी में गुरूओं केघर छोड़ दिया। गुरूओं ने लालच में आकर यह आफत अपने गले में डाल तो ली, परंतु संभालना कठिन हो गया। वहाँ तो दस-दस वृद्ध जमा हो गए। कोई वस्त्रों में पेशाब करदेता, कोई शौच आँगन में कर देता। यह समस्या काशी के सर्व ब्राह्मणों को थी। तंग आकर एक षड़यंत्रा रचा। गंगा दरिया के किनारे एकान्त स्थान पर एक नया घाट बनाया। उस परएक डाट (।तबी) आकार की गुफा बनाई। उसके बीच के ऊपर वाले भाग में एक लकड़ी चीरने का आरा यानि करौंत दूर से लंबे रस्सों से संचालित लगाया ।

 Om knowledge

           उस करौंत को पृथ्वीके अंदर  से लगभग सौ फुट दूर से मानव चलाते थे। ब्राह्मणों ने इसी योजना के तहत नया समाचार अपने अनुयाईयों को बताया कि परमात्मा का आदेशआया है। पवित्रा गंगा दरिया के किनारे एक करौंत परमात्मा का भेजा आता है। जो शीघ्र स्वर्ग जाना चाहता है, वह करौंत से मुक्ति ले सकता है। उसकी दक्षिणा भी बता दी। वृद्धव्यक्ति अपनी जिंदगी से तंग आकर अपने पुत्रों से कह देते कि पुत्रो! एक दिन तो भगवानके घर जाना ही है, हमारा उद्धार शीघ्र करवा दो। इस प्रकार यह परंपरा जोर पकड़ गई।बच्चे-बच्चे की जुबान पर यह परमात्मा का चमत्कार चढ़ गया। अपने-अपने वृद्धों को उसकरौंत से कटाकर मुक्ति मान ली। यह धारणा बहुत दृढ़ हो गई। कभी-कभी उस करौंत कारस्सा अड़ जाता तो उस मरने वाले से कह दिया जाता था कि तेरे लिए प्रभु का आदेश नहींआया है। एक सप्ताह बाद फिर से किस्मत आजमाना। इस तरह की घटनाओं से जनताको और अधिक विश्वास होता चला गया। जिसके नम्बर पर करौंत नहीं आता था, वह दुःखी होता था। अपनी किस्मत को कोसता था। मेरा पाप कितना अधिक है। मुझे परमात्मा कबस्वी कार करेगा? वे पाखण्डी उसकी हिम्मत बढ़ाते हुए कहते थे कि चिन्ता न कर, एक-दो दिन में तेरा दो बार नम्बर लगा देंगे। तब तक रस्सा ठीक कर लेते थे और हत्या का कामजारी रखते थे। इसको काशी में करौंत लेना कहते थे और गारण्टिड  मुक्ति होना मानते थे। स्वर्ग प्राप्ति का सरल तथा जिम्मेदारी के साथहोना माना जाता था जबकि यह अत्यंत निन्दनीय अपराधिक कार्य था। वाणी नं. 104 में कहा है कि शास्त्रा अनुकूल भक्ति के बिना कुछ भी लाभ नहींहोगा चाहे काशी में करौंत से गर्दन भी कटवा लो। कुछ बुद्धिजीवी व्यक्ति विचार किया करतेथे कि स्वर्ग प्राप्ति के लिए तो राजाओं ने राज्य त्यागा। जंगल में जाकर कठिन तपस्या की।शरीर के नष्ट होने की भी चिंता नहीं की। यदि स्वर्ग प्राप्त करना इतना सरल था तो यहविधि सत्य युग से ही प्रचलित होती। यह तो सबसे सरल है। सारी आयु कुछ भी करो। वृद्धअवस्था में काशी में निवास करो या करौंत से शीघ्र मरो और स्वर्ग में मौज करो। इसलिएवाणी नं. 104 में कहा है कि इससे भी कई शंकाएँ बनी रहती थी। यह विधि भी संदेह केघेरे में थी। यदि इतना ही मोक्ष मार्ग है तो गीता जैसे ग्रन्थ में लिखा होता। ऐसी शास्त्रा विरूद्ध क्रिया से मन के विकार भी समाप्त नहीं होते। विकारी जीव का मोक्ष होना बताना, संदेहस्पष्ट है।।
Geeta knowledg

  ये नकली धर्म गुरुआओ तथा पाखंडी ब्राह्मण  फेलाई हुई गलत धारण थी जिसे परमात्मा के बच्चों को परमात्मा की भक्ति भर्मित किया ।
अपने सभी धर्म के सद्ग्रन्थों में  लिखा हुआ कि  मनमानी भक्ति साधना करने से जीव का मोक्ष नही हो सकता है और वह भक्ति साधना वह परमात्मा हर युग मे आकर बताता है ।

सत भक्ति करने से जीव का मोक्ष हो सकता हैं।

असली भक्ति साधना तो कबीर परमात्मा ने बताई जिसका प्रमाण अपने सभी धर्म के  सद्ग्रन्थों में लिखा हुआ।

काशी में करौंत   की कथा का रहस्य जानने के लिए  अवश्य देखे  संत रामपाल जी महाराज  का सत्संग सुप्रसिद्ध  चैंनलों पर सत्संग।
👉साधना टीवी पर
7:30से8:30pm
👉ईश्वर टीवी पर
8:30से9:30pm
👉श्रद्धा टीवी पर
2:00

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