Tuesday, June 16, 2020

पूजा तथा साधना में अंतर ?

प्रश्न :- काल ब्रह्म की पूजा करनी चाहिए या नहीं? गीता में प्रमाण दिखाऐं।उत्तरः- नहीं करनी चाहिए। पहले आप जी को पूजा तथा साधना का भेद बताते हैं।भक्ति अर्थात् पूजा :- जैसे हमारे को पता है कि पृथ्वी के अन्दर मीठा शीतलजल है। उसको प्राप्त कैसे किया जा सकता है? उसके लिए बोकी के द्वारा जमीन में सुराख किया जाता है, उस सुराख (ठवतम) में लोहे की पाईप डाली जाती है,फिर हैण्डपम्प (नल) की मशीन लगाई जाती है, तब वह शीतल जीवन दाता जलप्राप्त होता है।हमारा पूज्य जल है, उसको प्राप्त करने के लिए प्रयोग किए उपकरण तथा प्रयत्न साधना जानें। यदि हम उपकरणों की पूजा में लगे रहे तो जल प्राप्त नहीं कर सकते, उपकरणों द्वारा पूज्य वस्तु प्राप्त होती है।


गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में तो गीता ज्ञान दाता ने बता दिया कितीनों गुणों (रजगुण श्री ब्रह्मा जी, सतगुण श्री विष्णु जी तथा तमगुण श्री शिव जी)की भक्ति व्यर्थ है। फिर गीता अध्याय 7 के श्लोक 16.17.18 में गीता ज्ञान दाताब्रह्म ने अपनी भक्ति से होने वाली गति अर्थात् मोक्ष को “अनुत्तम” अर्थात् घटियाबताया है। बताया है कि मेरी भक्ति चार प्रकार के व्यक्ति करते हैं।
1. अर्थार्थी :- धन लाभ के लिए वेदों अनुसार अनुष्ठान करने वाले।
2. आर्त :- संकट निवारण के लिए वेदों अनुसार अनुष्ठान करने
वाले।
3. जिज्ञासु :- परमात्मा के विषय में जानने के इच्छुक।(ज्ञान ग्रहण करके स्वयं वक्ता बन जाने वाले)इन तीनों प्रकार के ब्रह्म पुजारियों को व्यर्थ बताया है।

4. ज्ञानी :- ज्ञानी को पता चलता है कि मनुष्य जन्म बड़ा दुर्लभ है।
         मनुष्य जीवन प्राप्त करके आत्म-कल्याण कराना चाहिए। उन्हें यह भी ज्ञान हो जाता हैकि अन्य देवताओं की पूजा से मोक्ष लाभ होने वाला नहीं है। इसलिए एक परमात्माकी भक्ति अनन्य मन से करने से पूर्ण मोक्ष संभव है। उनको तत्वदर्शी सन्त नमिलने से उन्होंने जैसा भी वेदों को जाना, उसी आधार से ब्रह्म को एक समर्थ प्रभुमानकर यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्रा 15 से ओम् नाम लेकर भक्ति की, परन्तु पूर्ण मोक्षनहीं हुआ। ओम् (ऊँ) नाम ब्रह्म साधना का है, उससे ब्रह्मलोक प्राप्त होता है जोकिपूर्व में प्रमाणित किया जा चुका है। गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा है कि ब्रह्मलोक प्रयन्त सब लोक पुनरावर्ती में हैं अर्थात् ब्रह्म लोक में गए साधक भी पुनःलौटकर संसार में जन्म-मृत्यु के चक्र में गिरते हैं।काल ब्रह्म की साधना से वह मोक्ष प्राप्त नहीं होता जो गीता अध्याय 15श्लोक 4 में बताया है कि “तत्वज्ञान से अज्ञान को काटकर परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार मेंकभी वापिस नहीं आते।

गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि ये ज्ञानीआत्मा (जो चौथे नम्बर के ब्रह्म के साधक कहें हैं) हैं तो उदार अर्थात् नेक, परंतुये तत्वज्ञान के अभाव से मेरी अनुत्तम् गति में ही स्थित रहे। गीता ज्ञान दाता नेअपनी साधना से होने वाली गति को भी अनुत्तम अर्थात् घटिया कहा है, इसलिएब्रह्म पूजा करना भी उचित नहीं।कारण :- एक चुणक नाम का ऋषि ज्ञानी आत्मा था। उसने ओम् (ऊँ) नामका जाप तथा हठयोग हजारों वर्ष किया। जिससे उसमें सिद्धियाँ आ गई। ब्रह्म कीसाधना करने से जन्म-मृत्यु, स्वर्ग-नरक का चक्र सदा बना रहेगा क्योंकि गीताअध्याय 2 श्लोक 12ए गीता अध्याय 4 श्लोक 5ए गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में गीताज्ञान दाता ब्रह्म ने कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे अनेकों जन्म हो चुके हैं, तू नहींजानता, मैं जानता हूँ। तू, मैं तथा ये सर्व राजा लोग पहले भी जन्में थे, आगे भीजन्मेंगे। यह न सोच कि हम सब अब ही जन्में हैं। मेरी उत्पत्ति को महर्षिजन तथाये देवता नहीं जानते क्योंकि ये सब मेरे से उत्पन्न हुए हैं।

जो शास्त्रा विधि अनुसार भक्ति करने से सिद्धि प्राप्त होती है, वह गेहूँ काभुस (तूड़ा) समझें जो पशुओं के लिए उपयोगी तथा खाने में सुगम होता है। भावार्थहै कि शास्त्राविधि अनुसार साधना न करने से जो सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, वे साधकको नष्ट करती हैं क्योंकि अज्ञानतावश ऋषिजन उनका प्रयोग करके किसी कीहानि कर देते हैं, किसी को आशीर्वाद देकर अपनी भक्ति की शक्ति जो ¬ नामके जाप से होती है, उसको समाप्त करके फिर से खाली हो जाते हैं।जैसे चुणक ऋषि जी ने मानधाता चक्रवर्ती राजा की 72 करोड़ सेना का नाशकर दिया, अपनी भक्ति की सिद्धि भी खो दी। सूक्ष्मवेद में कहा है कि :-गरीब, बहतर क्षौणी क्षय करी, चुणक ऋषिश्वर एक।देह धारें जौरा (मृत्यु) फिरैं, सब ही काल के भेष।।भावार्थ :- ऋषियों में सर्वश्रेष्ठ ऋषि चुणक जी ने 72 करोड़ सेना का नाशकर दिया। ये दिखाई तो देते हैं महात्मा, लेकिन जब इनसे पाला पड़ता है तो येनिकलते हैं सर्प जैसे, जरा-सी बात पर श्राप दे देना, किसी से बेमतलब पंगा लेलेना इनके लिए आम बात होती है।


           अधिक जानकारी के लिए अवश्य                                       देखे संत रामपाल जी महाराज के                                        सुप्रसिद्ध चैंनलों पर।
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साधना टीवी पर 7:30से8:30pm

👉ईश्वर टीवी पर
8:30से9:30pm

👉श्रद्धा टीवी पर
2:00से3:00pm

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