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Friday, July 31, 2020

मांस खाना महापाप है।

मांस खाना हराम है।

  • मांस खाने का आदेश अल्लाह का नहीं है। न ही कुरान शरीफ़ में इसके खाने का ज़िक्र अल्लाह ने स्वयं किया। जो वेद या ग्रंथ मांस खाने को कहे वह परमात्मा का ज्ञान हो ही नहीं सकता। ऐसा तो केवल कोई शैतान ही ज़बरदस्ती करवाता है। आपको बता दें कि मुसलमानों की सबसे पवित्र किताब कुरान है जिसे पूरा मुस्लिम समाज मानता है।महत्वपूर्ण बात यह है कि परमात्मा ने इसमें मांस खाने का कहीं कोई आदेश नही है।

            मांस खाने का आदेश जिब्राइल फरिश्ते का था जिसे मुस्लिम भाई परमात्मा का फरमान मान बैठे और पाप के गर्त में डूब गए। पूरे दिन भूखे प्यासे रह कर पांच वक्त की नमाज़ पढ़ते हुए अल्लाह से अपने गुBनाहों की माफ़ी मांगते हो।
एक तरफ तो इबादत करते है  दूसरी तरफ अल्लाह के बच्चों का हल्लाह करते हो तो वह अल्लाह कैसे खुश हो  सकता है?
और न ही मांस खाना किसी भी धर्म ग्रन्थ में  है। जो व्यक्ति मांस खा रहा है वह परमात्मा के विधान को तोड़  रहा है।

खून खराबा करना  महापाप
खून खराबा करना अल्लाह कबीर जी का आदेश नही है।
  • हजरत मोहम्मद जी ने कभी मांस नही खाया फिर आज का मुसलमान धर्म क्यों  खा रहा है।

हजरत मुहम्मद जी जिस साधना को करता था वही साधना अन्य मुसलमान समाज भी
कर रहा है। वर्तमान में सर्व मुसलमान श्रद्धालु माँस भी खा  रहे ह परन्तु नबी मुहम्मद जी ने  माँस नहीं खाया तथा न ही उनके सीधे अनुयाईयों(एक लाख अस्सी हजार) ने माँस खाया।
केवल रोजा व बंग तथा नमाज किया करते थे। गाय आदि को बिस्मिल(हत्या) नहीं करते थे।
नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कूं सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।
अरस कुरस पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।
वे पैगम्बर पाख पुरुष थे, साहिब के अब्दाली।।


भावार्थ :- नबी मोहम्मद तो आदरणीय है जो प्रभु के अवतार कहलाए हैं। कसम है एक लाख
अस्सी हजार को जो उनके अनुयाई थे उन्होंने भी कभी बकरे, मुर्गे तथा गाय आदि पर करद
नहीं चलाया अर्थात् जीव हिंसा नहीं की तथा माँस भक्षण नहीं किया। वे हजरत मोहम्मद, हजरत
मूसा, हरजत ईसा आदि पैगम्बर(संदेशवाहक) तो पवित्रा व्यक्ति थे तथा ब्रह्म(ज्योति निरंजन/काल)
के कृपा पात्रा थे, परन्तु जो आसमान के अंतिम छोर(सतलोक) में पूर्ण परमात्मा(अल्लाहू अकबर
अर्थात् अल्लाह कबीर) है उस सृष्टी के मालिक की नजर से कोई नहीं बचा।

मारी गऊ शब्द के तीरं, ऐसे थे मोहम्मद पीरं।।
शब्दै फिर जिवाई, हंसा राख्या माँस नहीं भाख्या, एैसे पीर मुहम्मद भाई।।

 भावार्थ : एक समय नबी मुहम्मद ने एक गाय को शब्द(वचन सिद्धि) से मार कर सर्व के
सामने जीवित कर दिया था। उन्होंने गाय का माँस नहीं खाया। अब मुसलमान समाज
वास्तविकता से परिचित नहीं है। जिस दिन गाय जीवित की थी उस दिन की याद बनाए रखने
के लिए गऊ मार देते हो। आप जीवित नहीं कर सकते तो मारने के भी अधिकारी नहीं हो।
आप माँस को प्रसाद रूप जान कर खाते तथा खिलाते हो। आप स्वयं भी पाप के भागी बनते
हो तथा अनुयाईयों को भी गुमराह कर रहे हो। आप दोजख (नरक) के पात्रा बन रहे हो।


  •  कबीर अल्लाह ने मांस खाने वालर व्यक्तियों के बारे में बताया है।


जो व्यक्ति माँस खाते हैं,
शराब पीते हैं, सत्संग सुनकर भी बुराई नहीं त्यागते, उपदेश प्राप्त नहीं करते, उन्हें तो साक्षात
राक्षस जानों। अनजाने में गलती न जाने किससे हो जाए। यदि वह बुराई करने वाला व्यक्ति
सत्संग विचार सुनकर बुराई त्याग कर भगवान की भक्ति करने लग जाता है वह तो नेक आत्मा
है, वह चाहे किसी जाति व धर्म का हो। जो माँस आहार तथा सुरा पान त्याग कर प्रभु भक्ति
नहीं करता वह तो ढेड(नीच) व्यक्ति है, चाहे किसी जाति या धर्म का हो। भावार्थ है कि उच्च
कर्म करने वाला उच्च है तथा नीच कर्म करने वाला नीच है। जाति या धर्म विशेष में जन्म मात्रा
से उच्च-नीच नहीं होता। जिन साधकों ने उपदेश ले रखा है उन्हें उपरोक्त प्रकार के बुराई
करने वालों के पास नहीं बैठना चाहिए, जिससे आपकी भक्ति में बाधा पड़ेगी।
जो व्यक्ति माँस भक्षण करते हैं, शराब पीते हैं, जो स्त्रा वैश्यावृति करती है तथा जो व्यक्ति
उससे व्यवसाय करवा कर वैश्या से धन प्राप्त करते हैं, जुआ खेलते हैं तथा चोरी करते है,
समझाने से भी नहीं मानते, वह तो महापाप के भागी हैं तथा घोर नरक में गिरेंगे।
माँस चाहे गाय, हिरनी तथा मुर्गी आदि किसी प्राणी का है जो व्यक्ति माँस खाते हैं वे नरक
के भागी हैं। जो व्यक्ति अनजाने में माँस खाते हैं(जैसे आप किसी रिश्तेदारी में गए, आपको
पता नहीं लगा कि सब्जी है या माँस, आपने खा लिया) तो आप को दोष नहीं, परन्तु आगे से
अति सावधान रहना। जो व्यक्ति आँखों देखकर भी खा जाते हैं वे दोषी हैं। यह माँस तो कुत्ते
का आहार है, मनुष्य शरीर धारी के लिए वर्जित है।
जो गुरुजन माँस भक्षण करते हैं तथा शराब पीते हैं उनसे नाम दीक्षा प्राप्त करने वालों की
मुक्ति नहीं होती अपितु महा नरक के भागी होंग।
जो व्यक्ति जीव हिंसा करते हैं (चाहे गाय, सूअर, बकरी, मुर्गी, मनुष्य, आदि किसी भी
प्राणी को स्वार्थवश मारते हैं) वे महापापी हैं, (भले ही जिन्होंने पूर्ण संत से पूर्ण परमात्मा का
उपदेश भी प्राप्त है) वे कभी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते ।।
     

जीव हत्या महापाप
बेजुबानों जीवो की हत्या करने से अल्लाह कभी खुश नही होता है।

बकरी जो आपने मार डाली वह तो घास-फूंस, पत्ते आदि खाकर पेट भर रही थी। इस काल
लोक में ऐसे शाकाहारी पशु की भी हत्या हो गई तो जो बकरी का माँस खाते हैं उनका तो
अधिक बुरा हाल होगा(साखी 18)।
पशु आदि को हलाल, बिस्मिल आदि करके माँस खाने व प्रसाद रूप में वितरित करने का
आदेश दयालु (करीम) प्रभु का कब प्राप्त हुआ(क्योंकि पवित्रा बाईबल उत्पत्ति ग्रन्थ में पूर्ण
परमात्मा ने छः दिन में सृष्टी रची, सातवें दिन ऊपर तख्त पर जा बैठा तथा सर्व मनुष्यों के
आहार के लिए आदेश किया था कि मैंने तुम्हारे खाने के लिए फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे
दिए हैं।



  •  उस करीम (दयालु प्रभु पूर्ण परमात्मा) की ओर से आप को फिर से कब आदेश हुआ? वह कौन-सी कुआर्न में लिखा है ? पूर्ण परमात्मा सर्व मनुष्यों आदि की सृष्टी रचकर ब्रह्म(जिसेअव्यक्त कहते हो, जो कभी सामने प्रकट नहीं होता, गुप्तकार्य करता तथा करवाता रहता है)को दे गया।


 बाद में पवित्रा बाईबल तथा पवित्रा कुआर्न शरीफ आदि ग्रन्थों में जो विवरण है वह
ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) का तथा उसके फरिश्तों का है, या भूतों-प्रेतों का है। करीम अर्थात्
पूर्ण ब्रह्म दयालु अल्लाहु कबीरू का नहीं है। उस पूर्ण ब्रह्म के आदेश की अवहेलना किसी भी
फरिश्ते व ब्रह्म आदि के कहने से करने की सजा भोगनी पड़ेगी।)
एक समय एक व्यक्ति की दोस्ती एक पुलिस थानेदार से हो गई। उस व्यक्ति ने अपने दोस्त
थानेदार से कहा कि मेरा पड़ोसी मुझे बहुत परेशान करता है। थानेदार कहा कि मार
लट्ठ, मैं आप निपट लूंगा। थानेदार दोस्त की आज्ञा का पालन करके उस व्यक्ति ने अपने पड़ोसी
को लट्ठ मारा, सिर में चोट लगने के कारण पड़ौसी की मृत्यु हो गई। उसी क्षेत्रा का अधिकारी होने
के कारण वह थाना प्रभारी अपने दोस्त को पकड़ कर लाया, कैद में डाल दिया तथा उस व्यक्ति को
मृत्यु दण्ड मिला। उसका दोस्त थानेदार कुछ मदद नहीं कर सका। क्योंकि राजा का संविधान है
कि यदि कोई किसी की हत्या करेगा तो उसे मृत्यु दण्ड प्राप्त होगा। उस नादान व्यक्ति ने अपने
मित्रा दरोगा की आज्ञा मान कर राजा का संविधान भंग कर दिया। जिससे जीवन से हाथ धो बैठा।
ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा की आज्ञा की अवहेलना करने वाला पाप का भागी होगा।
क्योंकि कुआर्न शरीफ (मजीद) का सारा ज्ञान ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन, जिसे आप अव्यक्त
कहते हो) का दिया हुआ है। इसमें उसी का आदेश है तथा पवित्रा बाईबल में केवल उत्पत्ति ग्रन्थ के
प्रारम्भ में पूर्ण प्रभु का आदेश है। पवित्रा बाईबल में हजरत आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा को उस
पूर्ण परमात्मा ने बनाया। बाबा आदम की वंशज संतान हजरत ईस्राईल, राजा दऊद, हजरत मूसा,
हजरत ईसा तथा हजरत मुहम्मद आदि को माना है। पूर्ण परमात्मा तो छः दिन में सृष्टी रचकर
तख्त पर विराजमान हो गया। बाद का सर्व कतेबों (कुआर्न शरीफ आदि) का ज्ञान ब्रह्म
(काल/ज्योति निरंजन) का प्रदान किया हुआ है।

बेजुबानों की हत्या
जीव हत्या करना हराम है।

पवित्रा कुआर्न का ज्ञान दाता स्वयं कहता है कि
पूर्ण परमात्मा जिसे करीम, अल्लाह कहा जाता है उसका नाम कबीर है, वही पूजा के योग्य उसके तत्वज्ञान व भक्ति विधि को किसी बाखबर (तत्वदर्शी संत) से पता करो। इससे सिद्ध है कि
जो ज्ञान कुआर्न शरीफ आदि का है वह पूर्ण प्रभु का नहीं है (साखी
जब काजी के पुत्रा की मृत्यु हो जाती है तो काजी को कितना कष्ट होता है। पूर्ण ब्रह्म(अल्लाह
कबीर) सर्व का पिता है। उसके प्राणियों को मारने वाले से अल्लाह खुश नहीं होता
दर्द सर्व को एक जैसा ही होता है। अनजान नहीं जानते। यदि बकरे आदि का गला काट कर
(हलाल करके) उसे स्वर्ग भेज देते हो तो काजी तथा मुल्ला अपना गला छेदन करके (हलाल करके)
स्वर्ग प्राप्ति क्यों नहीं करते ?
जिस समय बकरी को मुल्ला मारता है तो वह बेजुबान प्राणी आँखों में आंसू भर कर म्यां-म्यां
करके समझाना चाहता है कि हे मुल्ला मुझे मार कर पाप का भागी मत बन। जब परमेश्वर के न्याय
अनुसार लेखा किया जाएगा उस समय तुझे बहुत संकट का सामना करना पड़ेगा।
जबरदस्ती (बलात्) निर्दयता से बकरी आदि प्राणी को मारते हो, कहते हो हलाल कर रहे हैं।
इस दोगली नीति का आपको महा कष्ट भोगना होगा। काजी तथा मुल्ला व कोई भी जीव हिंसा
करने वाला पूर्ण प्रभु के कानून का उल्लंघन कर रहा है, जिस कारण वहाँ धर्मराज के दरबार में
खड़ा-खड़ा पिटेगा। यदि हलाल ही करने का शौक है तो काम, क्रोध, मोह, अहंकार, लोभ आदि को
कर।
पाँच समय निमाज भी पढ़ते हो तथा रोजों के समय रोजे (व्रत) भी रखते हो। शाम को गाय,
बकरी, मुर्गी आदि को मार कर माँस खाते हो। एक तरफ तो परमात्मा की स्तुति करते हो दूसरी
ओर उसी के प्राणियों की हत्या करते हो। ऐसे प्रभु कैसे खुश होगा ? अर्थात् आप स्वयं भी पाप के
भागी हो रहे हो तथा अनुयाईयों को भी गुमराह करने के दोषी होकर नरक में गिरोगे।
कबीर परमेश्वर कह रहे हैं कि हे काजी, मुल्लाओं आप पीर (गुरु) भी कहलाते हो। पीर तो वह
होता है जो दूसरे के दुःख को समझे उसे, संकट में गिरने से बचाए। किसी को कष्ट न पहुँचाए। जो
दूसरे के दुःख में दुःखी नहीं होता वह तो काफिर (नीच) बेपीर (निर्दयी) है। वह पीर (गुरु) के योग्य
नहीं है।
उत्तम खाना नमकीन खिचड़ी है उसे खाओ। दूसरे का गला काटने वाले को उसका बदला देना
पड़ता है। यह जान कर समझदार व्यक्ति प्रतिफल में अपना गला नहीं कटाता। दोनों ही धर्मों के
मार्ग दर्शक निर्दयी हो चुके हैं। हिन्दूओं के गुरु कहते हैं कि हम तो एक झटके से बकरा आदि का
गला छेदन करते हैं, जिससे प्राणी को कष्ट नहीं होता, इसलिए हम दोषी नहीं हैं तथा मुसलमान
धर्म के मार्ग दर्शक कहते हैं हम धीरे-धीरे हलाल करते हैं जिस कारण हम दोषी नहीं। परमात्मा
कबीर साहेब जी ने कहा यदि आपका तथा आपके परिवार के सदस्य का गला किसी भी विधि से
काटा जाए तो आपको कैसा लगेगा ?
बात करते हैं पुण्य की, करते हैं घोर अधर्म।
दोनों नरक में पड़हीं, कुछ तो करो शर्म।।


गाय की हत्या महापाप
जीव हिंसा महापाप

कबीर परमेश्वर ने कहा -

हम मुहम्मद को सतलोक ले गया। इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो। उल्ट मुहम्मद महल पठाया, गुज बीरज एक  कलमा लाया।। रोजा, बंग, नमाज दई रे, बिसमिल की नहीं बात कही रे।
भावार्थ :- नबी मुहम्मद को मैं(कबीर परमेश्वर) सतलोक ले कर गया था परन्तु वहाँ न रहने
की इच्छा व्यक्त की, वापिस मुहम्मद जी को शरीर में भेज दिया। नबी मुहम्मद जी ने रोजा(व्रत)
बंग(ऊँची आवाज में प्रभु स्तुति करना) तथा पाँच समय की नमाज करना तो कहा था परन्तु
गाय आदि प्राणियों को बिस्मिल करने(मारने) को नहीं कहा।


रोजा बंग नमाज दई रे , बिस्मिल की नहीं बात कही रे “ मोहम्मद जी का केवल इतना ही आदेश था।उन्होंने गाय कभी बिस्मिल नहीं की।
हज़रत मुहम्मद जी ने कभी मांस नहीं खाया, न खाने का आदेश दिया। इन क़ाज़ी, मुल्लाओं ने, फरिश्तों ने डरा धमकाकर कर किसी के शरीर में प्रवेश करके ये सब गलत अफवाएं फैलाई। हज़रत मुहम्मद जी ने तो अपनी सिद्धि से एक मरी हुई गाय जीवित करी थी।

नबी मुहम्मद नमस्कार है राम रसूल कहाया 1लाख 80 को सौगंध जिन नहीं करद चलाया।
अरस कुरस पर अल्लह तख्त है खालिक बिन नहीं खाली।
वे पैगंबर पाक़ पुरुष थे, साहिब के अब्दाली।”

नबी मुहम्मद जी तो परमात्मा की बहुत नेक आत्मा थीं। उन्होंने कभी मांस नहीं खाया, न अपने 1,80,000 शिष्यों को खाने को कहा।
कबीर साहेब जी ने भी 600 वर्ष पहले गौ और अन्य जीव हत्या का कड़ा विरोध किया था।


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