नशा चाहे शराब, सुल्फा, अफीम, हिरोईन आदि-आदि किसी का भी करते हो, यह आपका सर्वनाश का कारण बनेगा। नशा सर्वप्रथम तो इंसान को शैतान बनाता है। फिर शरीर का नाश करता है। शरीर के चार महत्वपूर्ण अंग हैं :- 1. ण्फेफड़े, 2.जिगर (लीवर), 3. गुर्दे (ज्ञपकदमल), 4. हृदय। शराब सर्वप्रथम इन चारों अंगों को खराब करती है। सुल्फा (चरस) दिमाग को पूरी तरह नष्ट कर देता है। हिरोईन शराब से भी अधिक शरीर को खोखला करती है। अफीम से शरीर कमजोर हो जाता है। अपनी कार्यशैली छोड़ देता है। अफीम से ही चार्ज होकर चलने लगता है। रक्त दूषित हो जाता है। इसलिए इनको तो गाँव-नगर में भी नहीं रखे, घर की बात क्या। सेवन करना तो सोचना भी नहीं चाहिए।
मानव (स्त्री -पुरुष ) जीवन में पूर्व के शुभ कर्म अनुसार अच्छा भोजन मिला है। अच्छा मानव शरीर मिला है। जब चाहो, खाना खाओ। प्यास लगे, पानी पीओ। इच्छा बने तो चाय-दूध पीयो। फल तथा मेवा (काजू-बादाम) खाओ। यदि पूरा गुरू बनाकर सच्चे दिल से भक्ति व सत्संग सेवा, दान-धर्म नहीं किया तो अगले जन्म में गधा-बैल-कुत्ता बनकर दुर्दशा को प्राप्त हो जाओगे। न समय पर खाना मिलेगा, न पानी। न कोई गर्मी-सर्दी से, मच्छर-मक्खी से बचने का साधन होगा।मानव जीवन में तो मच्छरदानी, ऑल-आऊट से बचाव कर लेते हैं। गर्मी से बचनेके उपाय खोज लिए हैं। परंतु जब पशु बनोगे, तब क्या मिलेगा?
संत गरीबदासजी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त ज्ञान को इस प्रकार बताया है :-
गरीब, नर सेती तू पशुवा कीजै, गधा बैल बनाई।।
छप्पन भोग कहाँ मन बोरे, कुरड़ी चरने जाई।।
भावार्थ :- मानव शरीर छूट जाने के पश्चात् भक्ति हीन तथा शुभकर्म हीन होकर जीव गधे-बैल आदि-आदि की योनियों (शरीरों) को प्राप्त करेगा। फिर मानव शरीर वाला आहार नहीं मिलेगा। गधा बनकर कुरड़ी (कूड़े के ढ़ेर) पर गंद खाएगा। बैल बनकर नाक में नाथा (एक रस्सी) डाली जाएगी। रस्से से बँधा रहेगा।न प्यास लगने पर पानी पी सकेगा, न भूख लगने पर खाना खा सकेगा।मक्खी-मच्छर से बचने के लिए एक दुम होगी। उसको कूलर समझना, पंखा या मच्छरदानी समझना। जिन प्राणियों के अधिक पापकर्म होते हैं, पशु जीवन मेंउनकी दुम भी कट जाती है। एक-डेढ़ फुट का डण्डा शेष बचता है, उसे घुमाता रहता है।
जब यह प्राणी मानव शरीर में था तो उसने स्वपन में भी नहींसोचा था कि एक दिन मैं बैल भी बन जाऊँगा। अब बोलकर भी नहीं बता पा रहाथा कि दर्द कहाँ पर है? कबीर जी ने कहा है कि :-
कबीर, जिव्हा तो वोहे भली, जो रटै हरिनाम।।
ना तो काट के फैंक दियो, मुख में भलो ना चाम।।
भावार्थ :-
जैसे जीभ शरीर का बहुत महत्वपूर्ण अंग है। यदि परमात्मा कागुणगान तथा नाम-जाप के लिए प्रयोग नहीं किया जाता है तो व्यर्थ है क्योंकि इसजुबान से कोई किसी को कुवचन बोलकर पाप करता है। बलवान व्यक्ति निर्बल को गलत बात कह देता है जिससे उसकी आत्मा रोती है। बद्दुवा देती है। बोलकर सुना नहीं सकता क्योंकि मार भी पड़ सकती है। यह पाप हुआ। फिर किसी कीनिंदा करके, किसी की झूठी गवाही देकर, किसी को व्यापार में झूठ बोलकर ठगकर अनेकों प्रकार के पाप मानव अपनी जीभ से करता है। परमेश्वर कबीर जीने बताया है कि यदि जीभ का सदुपयोग नहीं करता है यानि शुभ वचन-शीतल वाणी, परमात्मा का गुणगान यानि चर्चा करना, धार्मिक सद्ग्रन्थों का पठन-पाठन तथा भगवान के नाम पर जाप-स्मरण जीभ से नहीं कर रहा है तो इसे काटकर फैंकदो। कोरे पाप इकट्ठे कर रहा है।(जीभ को काटने को कहना तो मात्रा उदाहरण है जो सतर्क करने को है।कहीं जीभ काटकर मत फैंक देना। अपने शुभ कर्म, शुभ वचन शुरू करना। यदिरामनाम व गुणगान नहीं कर रहा है तो पवित्रा मुख में इस जीभ के चाम को रखनाअच्छा नहीं है।)
अगले जन्म में वह व्यक्ति कुत्ता बनेगा, टट्टी खाएगा। गंदी नाली का पानीपीएगा। फिर पशु-पक्षी बनकर कष्ट पर कष्ट उठाएगा। इसलिए सर्व नशा व बुराई त्यागकर इंसान का जीवन जीओ। सभ्य समाज को भी चैन से जीने दो। एक शराबी अनेकों व्यक्तियों की आत्मा दुःखाता है :- पत्नी की, पत्नी के माता-पिता,भाई-बहनों की, अपने माता-पिता, बच्चों की, भाई आदि की। केवल एक घण्टे केनशे ने धन का नाश, इज्जत का नाश, घर के पूरे परिवार की शांति का नाश करदिया। क्या वह व्यक्ति भविष्य में सुखी हो सकता है? कभी नहीं। नरक जैसा जीवन जीएगा। इसलिए विचार करना चाहिए, बुराई तुरंत त्याग देनी चाहिऐं।
नशा केवल संत रामपाल जी महाराज जी की दी गई शास्त्र अनुसार भक्ति से ही व्यक्ति के सभी प्रकार के विकार छोड़ सकते हैं।
मानव (स्त्री -पुरुष ) जीवन में पूर्व के शुभ कर्म अनुसार अच्छा भोजन मिला है। अच्छा मानव शरीर मिला है। जब चाहो, खाना खाओ। प्यास लगे, पानी पीओ। इच्छा बने तो चाय-दूध पीयो। फल तथा मेवा (काजू-बादाम) खाओ। यदि पूरा गुरू बनाकर सच्चे दिल से भक्ति व सत्संग सेवा, दान-धर्म नहीं किया तो अगले जन्म में गधा-बैल-कुत्ता बनकर दुर्दशा को प्राप्त हो जाओगे। न समय पर खाना मिलेगा, न पानी। न कोई गर्मी-सर्दी से, मच्छर-मक्खी से बचने का साधन होगा।मानव जीवन में तो मच्छरदानी, ऑल-आऊट से बचाव कर लेते हैं। गर्मी से बचनेके उपाय खोज लिए हैं। परंतु जब पशु बनोगे, तब क्या मिलेगा?
संत गरीबदासजी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त ज्ञान को इस प्रकार बताया है :-
गरीब, नर सेती तू पशुवा कीजै, गधा बैल बनाई।।
छप्पन भोग कहाँ मन बोरे, कुरड़ी चरने जाई।।
भावार्थ :- मानव शरीर छूट जाने के पश्चात् भक्ति हीन तथा शुभकर्म हीन होकर जीव गधे-बैल आदि-आदि की योनियों (शरीरों) को प्राप्त करेगा। फिर मानव शरीर वाला आहार नहीं मिलेगा। गधा बनकर कुरड़ी (कूड़े के ढ़ेर) पर गंद खाएगा। बैल बनकर नाक में नाथा (एक रस्सी) डाली जाएगी। रस्से से बँधा रहेगा।न प्यास लगने पर पानी पी सकेगा, न भूख लगने पर खाना खा सकेगा।मक्खी-मच्छर से बचने के लिए एक दुम होगी। उसको कूलर समझना, पंखा या मच्छरदानी समझना। जिन प्राणियों के अधिक पापकर्म होते हैं, पशु जीवन मेंउनकी दुम भी कट जाती है। एक-डेढ़ फुट का डण्डा शेष बचता है, उसे घुमाता रहता है।
जब यह प्राणी मानव शरीर में था तो उसने स्वपन में भी नहींसोचा था कि एक दिन मैं बैल भी बन जाऊँगा। अब बोलकर भी नहीं बता पा रहाथा कि दर्द कहाँ पर है? कबीर जी ने कहा है कि :-
कबीर, जिव्हा तो वोहे भली, जो रटै हरिनाम।।
ना तो काट के फैंक दियो, मुख में भलो ना चाम।।
भावार्थ :-
जैसे जीभ शरीर का बहुत महत्वपूर्ण अंग है। यदि परमात्मा कागुणगान तथा नाम-जाप के लिए प्रयोग नहीं किया जाता है तो व्यर्थ है क्योंकि इसजुबान से कोई किसी को कुवचन बोलकर पाप करता है। बलवान व्यक्ति निर्बल को गलत बात कह देता है जिससे उसकी आत्मा रोती है। बद्दुवा देती है। बोलकर सुना नहीं सकता क्योंकि मार भी पड़ सकती है। यह पाप हुआ। फिर किसी कीनिंदा करके, किसी की झूठी गवाही देकर, किसी को व्यापार में झूठ बोलकर ठगकर अनेकों प्रकार के पाप मानव अपनी जीभ से करता है। परमेश्वर कबीर जीने बताया है कि यदि जीभ का सदुपयोग नहीं करता है यानि शुभ वचन-शीतल वाणी, परमात्मा का गुणगान यानि चर्चा करना, धार्मिक सद्ग्रन्थों का पठन-पाठन तथा भगवान के नाम पर जाप-स्मरण जीभ से नहीं कर रहा है तो इसे काटकर फैंकदो। कोरे पाप इकट्ठे कर रहा है।(जीभ को काटने को कहना तो मात्रा उदाहरण है जो सतर्क करने को है।कहीं जीभ काटकर मत फैंक देना। अपने शुभ कर्म, शुभ वचन शुरू करना। यदिरामनाम व गुणगान नहीं कर रहा है तो पवित्रा मुख में इस जीभ के चाम को रखनाअच्छा नहीं है।)
अगले जन्म में वह व्यक्ति कुत्ता बनेगा, टट्टी खाएगा। गंदी नाली का पानीपीएगा। फिर पशु-पक्षी बनकर कष्ट पर कष्ट उठाएगा। इसलिए सर्व नशा व बुराई त्यागकर इंसान का जीवन जीओ। सभ्य समाज को भी चैन से जीने दो। एक शराबी अनेकों व्यक्तियों की आत्मा दुःखाता है :- पत्नी की, पत्नी के माता-पिता,भाई-बहनों की, अपने माता-पिता, बच्चों की, भाई आदि की। केवल एक घण्टे केनशे ने धन का नाश, इज्जत का नाश, घर के पूरे परिवार की शांति का नाश करदिया। क्या वह व्यक्ति भविष्य में सुखी हो सकता है? कभी नहीं। नरक जैसा जीवन जीएगा। इसलिए विचार करना चाहिए, बुराई तुरंत त्याग देनी चाहिऐं।
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अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें सुप्रसिद्ध चैनलों पर संत रामपाल जी महाराज जी का सत्संग ।।
👉साधना टीवी पर 7:30 से 8:30 पीएम
👉ईश्वर टीवी पर 8:30 से 9:30 PM
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