Tuesday, June 30, 2020

सच्चा परमात्मा कौन है।।

             सच्चा परमात्मा वह जिनका प्रमाण                     अपने सभीधर्मग्रन्थ करते हैं


सच्चा परमात्मा वह है जो व्यक्ति की समस्त प्रकार की रोगों
का निवारण कर देता है तथा उसको सुखी जीवन जीने की राह प्रदान करता है परमात्मा के गुणों में लिखा हुआ है कि वह परमात्मा व्यक्ति के घोर से  घोर पापों को भी विनाश कर देता है तथा उसको 100 वर्ष की आयु प्रदान कर देता है और उसको सुखी जीवन जीने मार्ग देता है।
 सच्चा भगवान वह है जिनका प्रमाण सभी धर्मों के सद ग्रंथों में सच्चे भगवान का प्रमाण दे रखा है कि वह  परमात्मा सतलोक में विराजमान है राजा के समान दर्शनीय है सिर पर मुकुट है और बिजली जैसी गति करके यहां पर  अच्छी आत्माओं को मिलता है और उस सतलोक स्थान की जानकारी देता है
Sat bhkti sandesh
सत भक्ति का लाभ

                    कबीर साहेब चारों युगों में आते हैं

               सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।
               झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।

    ”सतयुग में कविर्देव (कबीर साहेब) का सत्सुकृत नाम से प्राकाट्य“तत्वज्ञान के अभाव से श्रद्धालु शंका व्यक्त करते हैं कि जुलाहे रूप में कबीर जीतो वि. सं. 1455 (सन् 1398) में काशी में आए हैं। वेदों में कविर्देव यही काशी वालाजुलाहा (धाणक) कैसे पूर्ण परमात्मा हो सकता है?इस विषय में दास (सन्त रामपाल दास) की प्रार्थना है कि यही पूर्ण परमात्माकविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपनावास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं। सतयुग मेंसतसुकृत नाम से, त्रोतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथाकलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं। इसके अतिरिक्तअन्य रूप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अन्तर्ध्यान हो जातेहैं। उस समय लीला करने आए परमेश्वर को प्रभु चाहने वाले श्रद्धालु नहीं पहचानसके, क्योंकि सर्व महर्षियों व संत कहलाने वालों ने प्रभु को निराकार बताया है।वास्तव में परमात्मा आकार में है। मनुष्य सदृश शरीर युक्त हैं। परंतु परमेश्वर काशरीर नाडि़यों के योग से बना पांच तत्व का नहीं है। एक नूर तत्व से बना है। पूर्णपरमात्मा जब चाहे यहाँ प्रकट हो जाते हैं वे कभी मां से जन्म नहीं लेते क्योंकि वे सर्वके उत्पत्ति कर्त्ता ह हो तो ऐसा पूर्ण प्रभु कबीर जी (कविर्देव) सतयुग में सतसुकृत नाम से स्वयं प्रकट हुए थे।उस समय गरुड़ जी, श्री ब्रह्मा जी श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी आदि को सतज्ञानसमझाया था। श्री मनु महर्षि जी को भी तत्वज्ञान समझाना चाहा था। परन्तु श्री मनुजी ने परमेश्वर के ज्ञान को सत न जानकर श्री ब्रह्मा जी से सुने वेद ज्ञान परआधारित होकर तथा अपने द्वारा निकाले वेदों के निष्कर्ष पर ही आरूढ़ रहे। इसकेविपरीत परमेश्वर सतसुकृत जी का उपहास करने लगे कि आप तो सर्व विपरीत ज्ञानकह रहे हो। इसलिए परमेश्वर सतसुकृत का उर्फ नाम वामदेव निकाल लिया (वामका अर्थ होता है उल्टा, विपरीत जैसे बायां हाथ को वामा अर्थात् उलटा हाथ भी कहतेहैं। जैसे दायें हाथ को सीधा हाथ भी कहते हैं)।इस प्रकार सतयुग में परमेश्वर कविर्देव जी जो सतसुकृत नाम से आए थे उससमय के ऋषियों व साधकों को वास्तविक ज्ञान समझाया करते थे। परन्तु ऋषियों नेस्वीकार नहीं किया। सतसुकृत जी के स्थान पर परमेश्वर को ‘‘वामदेव‘‘ कहने लगे।इसी लिए यजुर्वेद अध्याय 12 मंत्रा 4 में विवरण है कि यजुर्वेद के वास्तविक ज्ञानको वामदेव ऋषि ने सही जाना तथा अन्य को समझाया। पवित्रा वेदों के ज्ञान कोसमझने के लिए कृपया विचार करें - जैसे यजुर्वेद है, यह एक पवित्रा पुस्तक है।
Neme of god kabir
कबीर  साहेब जी ही पूर्ण परमात्मा है


 वेद प्रमाणित करते हैं कि वह परमात्मा कबीर साहेब जी है।

ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 86 मंत्रा 26.27,

 👉मण्डल नं. 9 सूक्त82 मंत्रा 1.2,



 👉मण्डल नं. 9 सूक्त 54 मंत्रा 3,



 👉मण्डल नं. 9 सूक्त 96 मंत्रा 16.20,

 👉मण्डलनं. 9 सूक्त 94 मंत्रा 2,

 👉मण्डल नं. 9 सूक्त 95 मंत्रा 1,

 👉मण्डल नं. 9 सूक्त 20 मंत्रा 1

       में कहा है कि परमेश्वर आकाश में सर्व भुवनों (लोकों) के ऊपर के लोक में तीसरे भाग में विराजमान है। वहाँ से चलकर पृथ्वी पर आता है। अपने रूप को सरल करके यानि अन्य वेश में हल्के तेज युक्त शरीर में पृथ्वी पर प्रकट होता है। अच्छी आत्माओं को यथार्थ आध्यात्म ज्ञान देने के लिए आता है। अपनी वाक (वाणी) द्वारा ज्ञान बताकर भक्ति करनेकी प्रेरणा करता है। कवियों की तरह आचरण करता हुआ विचरण करता है। अपनी महिमा के ज्ञान को कवित्व से यानि दोहों, शब्दों, चौपाईयों के माध्यम से बोलता है। जिस कारणसे प्रसिद्ध कवि की उपाधि भी प्राप्त करता है। यही प्रमाण संत गरीबदास जी ने इस अमृतवाणी में दिया है कि परमेश्वर गगन मण्डल यानि आकाश खण्ड (सच्चखण्ड) में रहताहै। वह अविनाशी है, अलेख जिसको सामान्य दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। सामान्य व्यक्तिउनकी महिमा का उल्लेख नहीं कर सकता। वह वहाँ से चलकर आता है। प्रत्येक युग में प्रकट होता है। भिन्न-भिन्न वेश बनाकर सत्संग करता है यानि तत्वज्ञान के प्रवचन सुनाताहै। कबीर जी ने बताया है कि :-

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सतयुग में सत सुकृत कह टेरा, त्रोता नाम मुनीन्द्र मेरा।।

द्वापर में करूणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया।।



           भावार्थ :-वह प्रभु परमात्मा चारों युगों में आते हैं सतयुग में  सतसुकृत के नाम से आते हैं त्रेता में मुनेंद्र के नाम से आते हैं द्वापर में करुणा नाम से आते हो कलयुग में कबीर नाम से आते है।
Kabir is god
 कबीर जी ही भगवान है कुल के

               पूर्ण परमात्मा ही सर्व जीवों का आधार

अध्याय 9 के श्लोक 3 से 6 में कहा है कि जो नियम गीता अध्याय 8 के श्लोक 5 से 10 मेंकहा है, यदि उसके आधार पर साधक साधना नहीं करता वह जन्म-मरण के चक्र में रहता है। फिरकहा है कि ये सर्व प्राणी उस परमात्मा के आधार हैं परंतु मैं इनसे न्यारा (ब्रह्मलोक में) हूँ क्योंकिकाल ब्रह्मलोक तथा इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में अलग से रहता है तथा ब्रह्म लोक में भी महाब्रह्मा-महाविष्णुतथा महाशिव रूप में गुप्त तथा भिन्न रहता है। वास्तव में यहाँ सर्व प्राणियों को वह पूर्ण परमात्मामाया द्वारा व्यवस्थित रखता है। मैं (काल) प्राणियों में नहीं हूँ। जैसे वायु आकाश में ठहराई है वैसेही जीव उस परमात्मा में अपने कर्माधार पर उसी की (शक्ति) माया द्वारा व्यवस्थित हैं। गीताअध्याय 13 श्लोक 17 तथा अध्याय 18 श्लोक 61 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि पूर्ण परमात्मासर्व प्राणियों के हृदय में विशेष रूप से स्थित है। वही सर्व प्राणियों को कर्माधार से यन्त्रा की तरहभ्रमण कराता है।
Superme pawar kabir
कबीर  साहेब जी ने सृष्टि की रचना की


                  पवित्रा कुरान शरीफ में प्रमाण
प्रमाण:-👇👇👇



        " पवित्र बाइबल तथा पवित्र कुरान शरीफ में सृष्टि रचना का प्रमाण"

इसी का प्रमाण पवित्र बाईबल में तथा पवित्र कुरान शरीफ में भी है।कुरान शरीफ में पवित्र बाईबल का भी ज्ञान है, इसलिए इन दोनों पवित्र सद्ग्रन्थों ने मिल-जुल कर प्रमाणित किया है कि कौन तथा कैसा है सृष्टि रचनहार तथा उसका  नाम क्या है।

👉पवित्र बाईबल (उत्पत्ति ग्रन्थ पृष्ठ नं. 2 पर, अ. 1ः20 - 2ः5 पर)छटवां दिन :- प्राणी और मनुष्य :अन्य प्राणियों की रचना करके ।

26.   फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूपके अनुसार अपनी समानता में बनाएं, जो सर्व प्राणियों को काबू रखेगा।

 27. तब परमेश्वर नेमनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर नेउसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टि की।



29. प्रभु ने मनुष्यों के खाने के लिए जितने बीज वाले छोटे पेड़ तथा जितने पेड़ों में बीजवाले फल होते हैं वे भोजन के लिए प्रदान किए हैं, (माँस खाना नहीं कहा है।)सातवां दिन :- विश्राम का दिन :परमेश्वर ने छः दिन में सर्व सृष्टि की उत्पत्ति की तथा सातवें दिन विश्राम किया।पवित्र बाईबल ने सिद्ध कर दिया कि परमात्मा मानव सदृश शरीर में है, जिसने छः दिन में सर्व सृष्टि की रचना की तथा फिर विश्राम किया।

       

God is form
परमात्मा साकार है

         पवित्र कुरान शरीफ (सुरत फुर्कानि 25, आयत नं. 52, 58, 59)आयत 52 :-

 फला तुतिअल् - काफिरन् व जहिद्हुम बिही जिहादन् कबीरा(कबीरन्)।।

52।इसका भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद जी का खुदा (प्रभु) कह रहा है कि हे पैगम्बर !आप काफिरों (जो एक प्रभु की भक्ति त्याग कर अन्य देवी-देवताओं तथा मूर्ति आदि कीपूजा करते हैं) का कहा मत मानना, क्योंकि वे लोग कबीर को पूर्ण परमात्मा नहीं मानते।आप मेरे द्वारा दिए इस कुरान के ज्ञान के आधार पर अटल रहना कि कबीर ही पूर्ण प्रभु हैतथा कबीर अल्लाह के लिए संघर्ष करना (लड़ना नहीं) अर्थात् अडिग रहना।।



आयत 58 :- व तवक्कल् अलल् - हरिल्लजी ला यमूतु व सब्बिह् बिहम्दिही व कफाबिही बिजुनूबि िअबादिही खबीरा (कबीरा)।।58।भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद जी जिसे अपना प्रभु मानते हैं वह अल्लाह (प्रभु)किसी और पूर्ण प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है कि



 ऐ पैगम्बर उस कबीर परमात्मा परविश्वास रख जो तुझे जिंदा महात्मा के रूप में आकर मिला था। वह कभी मरने वालानहीं है अर्थात् वास्तव में अविनाशी है। तारीफ के साथ उसकी पाकी (पवित्रा महिमा)का गुणगान किए जा, वह कबीर अल्लाह (कविर्देव) पूजा के योग्य है तथा अपने उपासकों के सर्व पापों को विनाश करने वाला है।

Allah kabir
कबीर जी ही अल्लाह है

आयत 59 :- अल्ल्जी खलकस्समावाति वल्अर्ज व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन्सुम्मस्तवा अलल्अर्शि अर्रह्मानु फस्अल् बिही खबीरन्(कबीरन्)।।59।।



भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद को कुरान शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कहरहा है कि वह कबीर प्रभु वही है जिसने जमीन तथा आसमान के बीच में जो भी विद्यमान है सर्व सृष्टि की रचना छः दिन में की तथा सातवें दिन ऊपर अपनेसत्यलोक में सिंहासन पर विराजमान हो (बैठ) गया। उसके विषय में जानकारी किसी(बाखबर) तत्वदर्शी संत से पूछो



उपरोक्त दोनों पवित्रा धर्मों (ईसाई तथा मुसलमान) के पवित्र शास्त्रों ने भी मिल-जुल कर प्रमाणित कर दिया कि सर्व सृष्टि रचनहार, सर्व पाप  विनाशक , सर्वशक्तिमान, अविनाशी परमात्मा मानव सदृश शरीर में आकार में है तथा सत्यलोक मेंरहता है। उसका नाम कबीर है, उसी को अल्लाहु अकबिरू भी कहते हैं।

Allah knowledge
 कबीर साहेब जी भगवान है

अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज के सुप्रसिद्ध चैनल पर सत्संग



 👉साधना टीवी पर 7:30 से 8:30pm

👉 ईश्वर टीवी पर 8:30 से 9:30 पीएम

👉 श्रद्धा टीवी पर 2:00 से 3:00 a.m.



Must watch visit

www.jagatgururampalji.org

Friday, June 26, 2020

जगन्नाथ मंदिर की कहानी ?

पुरी में श्री जगन्नाथ जी का मन्दिर कैसे बना ??

     उड़ीसा प्रांत में एक इन्द्रदमन नाम का राजा था। वह भगवान श्री कृष्ण जी का अनन्यभक्त था। एक रात्रा को श्री  कृष्ण जी ने राजा को स्वपन में दर्शन देकर कहा कि जगन्नाथ  नाम से मेरा एक मन्दिर बनवा दे। श्री कृष्ण जी ने यह भी कहा था कि इस मन्दिर में मूर्तिपूजा नहीं करनी है। केवल एक संत छोड़ना है जो दर्शकों को पवित्रा गीता अनुसार ज्ञान प्रचारकरे। समुद्र तट पर वह स्थान भी दिखाया जहाँ मन्दिर बनाना था। सुबह उठकर राजाइन्द्रदमन ने अपनी पत्नी को बताया कि आज रात्रा को भगवान श्री कृष्ण जी दिखाई दिए।मन्दिर बनवाने के लिए कहा है। रानी ने कहा शुभ कार्य में देरी क्या? सर्व सम्पत्ति उन्हीं की दी हुई है। उन्हीं को समर्पित करने में क्या सोचना है? राजा ने उस स्थान पर मन्दिर बनवा दिया।।
  
जगन्नाथ मंदिर का रहस्य


  • पांच बार मंदिर  टूटा और दुबारा बना तथा किसने बनाया इसका रहस्य क्या है ??

          मन्दिर बनने के बाद समुद्री तुफान उठा, मन्दिर को तोड़ दिया। निशान भी नहीं बचा कि यहाँ मन्दिर था। ऐसे राजा ने पाँच बार मन्दिर बनवाया। पाँचों बार समुद्र ने तोड़ दिया।राजा ने निराश होकर मन्दिर न बनवाने का निर्णय ले लिया। यह सोचा कि न जाने समुद्रमेरे से कौन-से जन्म का प्रतिशोध ले रहा है। कोष रिक्त हो गया, मन्दिर बना नहीं। कुछ समयउपरान्त पूर्ण परमेश्वर (कविर्देव) ज्योति निरंजन (काल) को दिए वचन अनुसार राजा इन्द्रदमनके पास आए तथा राजा से कहा आप मन्दिर बनवाओ। अब के समुद्र मन्दिर (महल) नहीं तोड़ेगा। राजा ने कहा संत जी मुझे विश्वास नहीं है। मैं भगवान श्री कृष्ण (विष्णु) जी के आदेशसे मन्दिर बनवा रहा हूँ। श्री कृष्ण जी समुद्र को नहीं रोक पा रहे हैं। पाँच बार मन्दिर बनवा चुका हूँ, यह सोच कर कि कहीं भगवान मेरी परीक्षा ले रहे हों। परन्तु अब तो परीक्षा देने योग्यभी नहीं रहा हूँ क्योंकि कोष भी रिक्त हो गया है। अब मन्दिर बनवाना मेरे वश की बात नहीं।परमेश्वर ने कहा इन्द्रदमन जिस परमेश्वर ने सर्व ब्रह्मण्डां की रचना की है, वही सर्व कार्य करने में सक्षम है, अन्य प्रभु नहीं। मैं उस परमेश्वर की वचन शक्ति प्राप्त हूँ। मैं समुद्र को रोक सकता हूँ (अपने आप को छुपाते हुए यर्थाथ कह रहे थे)।

जगन्नाथ मंदिर पूजा

  • छटवीं बार  मंदिर किसने बनाया
  •  उसका रहस्य ??

            प्रभु कबीर जी (कविर्देव) ने कहा कि जिस तरफ से समुद्र उठ करआता है, वहाँ समुद्र के किनारे एक चौरा (चबूतरा) बनवा दे। जिस पर बैठ कर मैं प्रभु की भक्तिकरूंगा तथा समुद्र को रोकूंगा।राजा ने एक बड़े पत्थर को कारीगरों से चबूतरा  बनवाया, परमेश्वर कबीर उस परबैठ गए। छटी बार मन्दिर बनना प्रारम्भ हुआ। उसी समय एक नाथ परम्परा के सिद्ध महात्माआ गए। नाथ जी ने राजा से कहा राजा बहुत अच्छा मन्दिर बनवा रहे हो, इसमें मूर्ति भी स्थापित करनी चाहिए। मूर्ति बिना मन्दिर कैसा? यह मेरा आदेश है। राजा इन्द्रदमन ने हाथजोड़ कर कहा नाथ जी प्रभु श्री कृष्ण जी ने मुझे स्वपन में दर्शन दे कर मन्दिर बनवाने काआदेश दिया था तथा कहा था कि इस महल में न तो मूर्ति रखनी है, न ही पाखण्ड पूजा करनीहै। राजा की बात सुनकर नाथ ने कहा स्वपन भी कोई सत होता है। मेरे आदेश का पालन कीजिए तथा चन्दन की लकड़ी की मूर्ति अवश्य स्थापित कीजिएगा।
भक्ति साधना जगन्नाथ मंदिर

  • जगन्नाथ मंदिर में मूर्तियों के  हाथ और पैरों के पंजे पूरे क्यों नही बने ??

          कारीगर वेश में प्रभु ने राजा से कहा मैंने सुना है कि प्रभु के मन्दिर के लिए मूर्तियाँ पूर्ण नहीं हो रही हैं। मैं 80 वर्ष का वृद्ध हो चुका हूँ तथा 60 वर्ष का अनुभव है।चन्दन की लकड़ी की मूर्ति प्रत्येक कारीगर नहीं बना सकता। यदि आप की आज्ञा हो तो सेवक उपस्थित है। राजा ने कहा कारीगर आप मेरे लिए भगवान ही कारीगर बन कर आये लगते हो।मैं बहुत चिन्तित था। सोच ही रहा था कि कोई अनुभवी कारीगर मिले तो समस्या का समाधान बने। आप शीघ्र मूर्तियाँ बना दो। वृद्ध कारीगर रूप में आए कविर्देव (कबीर प्रभु) ने कहा राजन मुझे एक कमरा दे दो, जिसमें बैठ कर प्रभु की मूर्ति तैयार करूंगा। मैं अंदर से दरवाजा बंद करके स्वच्छता से मूर्ति बनाऊंगा। ये मूर्तियां जब तैयार हो जायेंगी तब दरवाजा खुलेगा, यदिबीच में किसी ने खोल दिया तो जितनी मूर्तियाँ बनेगी उतनी ही रह जायेंगी। राजा ने कहा जैसाआप उचित समझो वैसा करो।



प्रभु का भेजा एक अनुभवी 80 वर्षीय कारीगर बन्द कमरें में मूर्ति बना रहा है। उसने कहा है कि मूर्तियाँ बन जाने पर मैं अपने आप द्वार खोल दूंगा। यदि किसी ने बीच में द्वार खोल दिया तो जितनी मूर्तियाँ बनी होंगी उतनी ही रह जायेंगी। आज उसे मूर्ति बनाते बारह दिन हो गये। न तो बाहर निकला है, न ही जल पानतथा आहार ही किया है। नाथ जी ने कहा कि मूर्तियाँ देखनी चाहिये, कैसी बना रहा है? बनने के बाद क्या देखना है। ठीक नहीं बनी होंगी तो ठीक बनायेंगे। यह कहकर नाथ जी राजा इन्द्रदमन को साथ लेकर उस कमरे के सामने गए जहाँ मूर्ति बनाई जा रही थी तथा आवाज लगाई कारीगर द्वार खोलो। कई बार कहा परन्तु द्वार नहीं खुला तथा जो खट-खट की आवाज आ रही थी, वह भी बन्द हो गई। नाथ जी ने कहा कि 80 वर्षीय वृद्ध बता रहे हो, बारह दिन खाना-पिना भी नहीं किया है। अब आवाज भी बंद है, कहीं मर न गया हो। धक्का मार कर दरवाजा तोड़ दिया, देखा तो तीन मूर्तियाँ रखी थी, तीनों के हाथ के व पैरों के पंजे नहीं बने थे। कारीगर अन्तर्ध्यान था।



मूर्ति स्थापना हो जाने के कुछ दिन पश्चात् लगभग 40 फूट ऊँचा समुद्र का जल उठा जिसे समुद्री तुफान कहते हैं तथा बहुत वेग से मन्दिर की ओर चला। सामने कबीर परमेश्वरचौरा (चबुतरे) पर बैठे थे। अपना एक हाथ उठाया जैसे आर्शीवाद देते हैं, समुद्र उठा का उठारह गया तथा पर्वत की तरह खड़ा रहा, आगे नहीं बढ़ सका। विप्र रूप बना कर समुद्र आयातथा चबूतरे पर बैठे प्रभु से कहा कि भगवन आप मुझे रास्ता दे दो, मैं मन्दिर तोड़ने जाऊंगा।प्रभु ने कहा कि यह मन्दिर नहीं है। यह तो महल (आश्रम) है। इस में विद्वान् पुरुष रहा करेगा तथा पवित्रा गीता जी का ज्ञान दिया करेगा। आपका इसको विधवंश करना शोभा नहीं देता।समुद्र ने कहा कि मैं इसे अवश्य तोडूंगा। प्रभु ने कहा कि जाओ कौन रोकता है? समुद्र ने कहा कि मैं विवश हो गया हूँ। आपकी शक्ति अपार है। मुझे रस्ता दे दो प्रभु। परमेश्वर कबीर साहेब जी ने पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो? विप्र रूप में उपस्थित समुद्र ने कहा कि जब यहश्री कृष्ण जी त्रोतायुग में श्री रामचन्द्र रूप में आया था तब इसने मुझे अग्नि बाण दिखा कर बुरा भला कह कर अपमानित करके रास्ता मांगा था। मैं वह प्रतिशोध लेने जा रहा हूँ।परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि प्रतिशोध तो आप पहले ही ले चुके हो। आपने द्वारिका को डूबो रखा है। समुद्र ने कहा कि अभी पूर्ण नहीं डूबा पाया हूँ, आधी रहती है। वह भी कोई प्रबल शक्ति युक्त संत सामने आ गया था जिस कारण से मैं द्वारिका को पूर्ण रूपेण नहीं समापाया। अब भी कोशिश करता हूँ तो उधर नहीं जा पा रहा हूँ। उधर जाने से मुझे बांध रखा है।।

रहस्य जगन्नाथ पुरी का

  • जगन्नाथ मंदिर में छुआछूत क्यों नही है इसका रहस्य क्या ??

                      कुछ दिन पश्चात जिस पांडे ने प्रभु कबीर जी को शुद्र रूप में धक्का मारा था उसको कुष्ट रोग हो गया। सर्व औषधी करने पर भी स्वस्थ नहीं हुआ। कुष्ट रोग का कष्ट अधिक सेअधिक बढ़ता ही चला गया। सर्व उपासनायें भी की, श्री जगन्नाथ जी से रो-रोकर संकट निवार्णके लिए प्रार्थना की, परन्तु सर्व निष्फल रही। स्वपन में श्री कृष्ण जी ने दर्शन दिए तथा कहापांडे उस संत के चरण धोकर चरणामृत पान कर जिसको तुने मन्दिर के मुख्य द्वार पर धक्का मारा था। तब उसके आशीर्वाद से तेरा कुष्ट रोग ठीक हो सकता है। यदि उसने तुझे हृदयसे क्षमा किया तो, तेरा कुष्ट रोग समाप्त होगा अन्यथा नहीं। मरता क्या नहीं करता?

वह मुख्य पांडा सवेरे उठा। कई सहयोगी पांडों को साथ लेकर उस स्थान पर गया जहाँ पर प्रभु कबीर जी शुद्र रूप में विराजमान थे। ज्यों ही पांडा प्रभु के निकट आया तो परमेश्वरउठ कर चल पड़े तथा कहा हे पांडा मैं तो अछूत हूँ मेरे से दूर रहना, कहीं आप अपवित्रा नहो जायें। पांडा निकट पहूँचा, परमेश्वर और आगे चल पड़े। तब पांडा फूट-फूट कर रोने लगातथा कहा परवरदीगार मेरा दोष क्षमा कर दो। तब दयालु प्रभु रूक गए। पांडे ने आदर के साथ एक स्वच्छ वस्त्रा जमीन पर बिछा कर प्रभु को बैठने की प्रार्थना की। प्रभु उस वस्त्रा पर बैठ गए।तब उस पांडे ने स्वयं चरण धोए तथा चरणामृत को पात्रा में वापिस डाल लिया। प्रभु कबीर जीने कहा पांडे चालीस दिन तक इसे पीना भी तथा स्नान करने वाले जल में कुछ डाल कर स्नान करते रहना। चालीसवें दिन तेरा कुष्ट रोग समाप्त होगा तथा कहा कि भविष्य में भी इस जगन्नाथ जी के मन्दिर में किसी ने छूआछात किया तो उसको भी दण्ड मिलेगा। सर्व उपस्थित व्यक्तियों ने वचन किए कि आज के बाद इस पवित्रा स्थान पर कोई छुआ-छात नहीं की जायेगी।
अदभुत रहस्य जगन्नाथ पुरी का

विचार करें :- 
                हिन्दुस्तान का एकमात्रा ऐसा मन्दिर है जिसमें प्रारम्भ से ही छूआ-छात नहीं रही है।

जगन्नाथ पुरी के पूरे प्रकरण को जानने के लिए अवश्य देखे संत रामपाल जी महाराज के सुप्रसिद्ध चैंनलों पर सत्संग।
👉साधना टीवी पर।
7:30से8:30pm
👉ईश्वर टीवी पर
8:30से9:30pm
👉श्रद्धा  टीवी पर
2:00से3:00am

Wednesday, June 24, 2020

काशी में करौंत की कथा ?

काशी में करौंत  की कथा 

शास्त्राविधि त्यागकर मनमाना आचरण करने यानि शास्त्रों में लिखी भक्ति विधि अनुसार साधना न करने से गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में लिखा है कि उस साधक को न तो सुख की प्राप्ति होती है, न भक्ति की शक्ति (सिद्धि) प्राप्त होती है, न उसकी गति(मुक्ति) होती है अर्थात् व्यर्थ प्रयत्न है। हिन्दू धर्म के धर्मगुरू जो साधना साधक समाज कोबताते हैं, वह शास्त्रा प्रमाणित नहीं है। जिस कारण से साधको को परमात्मा की ओर से कोईलाभ नहीं मिला जो भक्ति से अपेक्षित किया। फिर धर्मगुरूओं ने एक योजना बनाई कि।।

                             काशी करोंत  

            भगवान शिव का आदेश हुआ है कि जो काशी नगर में प्राण त्यागेगा, उसके लिए स्वर्ग का द्वार खुल जाएगा। वह बिना रोक-टोक के स्वर्ग चला जाएगा। जो मगहर नगर (गोरखपुरके पास उत्तरप्रदेश में) वर्तमान में जिला-संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) में है, उसमें मरेगा,वह नरक जाएगा या गधे का शरीर प्राप्त करेगा। गुरूजनों की प्रत्येक आज्ञा का पालन करना अनुयाईयों का परम धर्म माना गया है। इसलिए हिन्दू लोग अपने-अपने माता-पिताको आयु के अंतिम समय में काशी (बनारस) शहर में किराए पर मकान लेकर छोड़ने लगे।यह क्रिया धनी लोग अधिक करते थे। धर्मगुरूओं ने देखा कि जो यजमान काशी में रहनेलगे हैं, उनको अन्य गुरूजन भ्रमित करके अनुयाई बनाने लगे हैं। काशी, गया, हरिद्वार आदि-आदि धार्मिक स्थलों पर धर्मगुरूओं (ब्राह्मणों) ने अपना-अपना क्षेत्रा बाँट रखा है। यदिकोई गुरू अन्य गुरू के क्षेत्रा वाले यजमान का क्रियाकर्म कर देता है तो वे झगड़ा कर
              यदि कोई गुरू अन्य गुरू के क्षेत्रा वाले यजमान का क्रियाकर्म कर देता है तो वे झगड़ा कर देतेहैं। मारपीट तक की नौबत आ जाती है। वे कहते हैं कि हमारी तो यही खेती है, हमारा निर्वाह इसी पर निर्भर है। हमारी सीमा है। इसी कारण से काशी के शास्त्राविरूद्ध साधना कराने वाले ब्राह्मणों ने अपने यजमानों से कहा कि आप अपने  माता-पिता को हमारे घर रखो। जो खर्च आपका मकान के किराए में तथा खाने-पीने में होता है, वह हमें दक्षिणा रूपमें देते रहना। हम इनकी देखरेख करेंगे। इनको कथा भी सुनाया करेंगे। उनके परिवार वालों को यह सुझाव अति उत्तम लगा और ब्राह्मणों के घर अपने वृद्ध माता-पिता को छोड़ने लगे और ब्राह्मणों को खर्चे से अधिक दक्षिणा देने लगे। इस प्रकार एक ब्राह्मण के घर प्रारम्भ में चार या पाँच वृद्ध रहे। अच्छी व्यवस्था देखकर सबने अपने वृद्धों को काशी में गुरूओं केघर छोड़ दिया। गुरूओं ने लालच में आकर यह आफत अपने गले में डाल तो ली, परंतु संभालना कठिन हो गया। वहाँ तो दस-दस वृद्ध जमा हो गए। कोई वस्त्रों में पेशाब करदेता, कोई शौच आँगन में कर देता। यह समस्या काशी के सर्व ब्राह्मणों को थी। तंग आकर एक षड़यंत्रा रचा। गंगा दरिया के किनारे एकान्त स्थान पर एक नया घाट बनाया। उस परएक डाट (।तबी) आकार की गुफा बनाई। उसके बीच के ऊपर वाले भाग में एक लकड़ी चीरने का आरा यानि करौंत दूर से लंबे रस्सों से संचालित लगाया ।

 Om knowledge

           उस करौंत को पृथ्वीके अंदर  से लगभग सौ फुट दूर से मानव चलाते थे। ब्राह्मणों ने इसी योजना के तहत नया समाचार अपने अनुयाईयों को बताया कि परमात्मा का आदेशआया है। पवित्रा गंगा दरिया के किनारे एक करौंत परमात्मा का भेजा आता है। जो शीघ्र स्वर्ग जाना चाहता है, वह करौंत से मुक्ति ले सकता है। उसकी दक्षिणा भी बता दी। वृद्धव्यक्ति अपनी जिंदगी से तंग आकर अपने पुत्रों से कह देते कि पुत्रो! एक दिन तो भगवानके घर जाना ही है, हमारा उद्धार शीघ्र करवा दो। इस प्रकार यह परंपरा जोर पकड़ गई।बच्चे-बच्चे की जुबान पर यह परमात्मा का चमत्कार चढ़ गया। अपने-अपने वृद्धों को उसकरौंत से कटाकर मुक्ति मान ली। यह धारणा बहुत दृढ़ हो गई। कभी-कभी उस करौंत कारस्सा अड़ जाता तो उस मरने वाले से कह दिया जाता था कि तेरे लिए प्रभु का आदेश नहींआया है। एक सप्ताह बाद फिर से किस्मत आजमाना। इस तरह की घटनाओं से जनताको और अधिक विश्वास होता चला गया। जिसके नम्बर पर करौंत नहीं आता था, वह दुःखी होता था। अपनी किस्मत को कोसता था। मेरा पाप कितना अधिक है। मुझे परमात्मा कबस्वी कार करेगा? वे पाखण्डी उसकी हिम्मत बढ़ाते हुए कहते थे कि चिन्ता न कर, एक-दो दिन में तेरा दो बार नम्बर लगा देंगे। तब तक रस्सा ठीक कर लेते थे और हत्या का कामजारी रखते थे। इसको काशी में करौंत लेना कहते थे और गारण्टिड  मुक्ति होना मानते थे। स्वर्ग प्राप्ति का सरल तथा जिम्मेदारी के साथहोना माना जाता था जबकि यह अत्यंत निन्दनीय अपराधिक कार्य था। वाणी नं. 104 में कहा है कि शास्त्रा अनुकूल भक्ति के बिना कुछ भी लाभ नहींहोगा चाहे काशी में करौंत से गर्दन भी कटवा लो। कुछ बुद्धिजीवी व्यक्ति विचार किया करतेथे कि स्वर्ग प्राप्ति के लिए तो राजाओं ने राज्य त्यागा। जंगल में जाकर कठिन तपस्या की।शरीर के नष्ट होने की भी चिंता नहीं की। यदि स्वर्ग प्राप्त करना इतना सरल था तो यहविधि सत्य युग से ही प्रचलित होती। यह तो सबसे सरल है। सारी आयु कुछ भी करो। वृद्धअवस्था में काशी में निवास करो या करौंत से शीघ्र मरो और स्वर्ग में मौज करो। इसलिएवाणी नं. 104 में कहा है कि इससे भी कई शंकाएँ बनी रहती थी। यह विधि भी संदेह केघेरे में थी। यदि इतना ही मोक्ष मार्ग है तो गीता जैसे ग्रन्थ में लिखा होता। ऐसी शास्त्रा विरूद्ध क्रिया से मन के विकार भी समाप्त नहीं होते। विकारी जीव का मोक्ष होना बताना, संदेहस्पष्ट है।।
Geeta knowledg

  ये नकली धर्म गुरुआओ तथा पाखंडी ब्राह्मण  फेलाई हुई गलत धारण थी जिसे परमात्मा के बच्चों को परमात्मा की भक्ति भर्मित किया ।
अपने सभी धर्म के सद्ग्रन्थों में  लिखा हुआ कि  मनमानी भक्ति साधना करने से जीव का मोक्ष नही हो सकता है और वह भक्ति साधना वह परमात्मा हर युग मे आकर बताता है ।

सत भक्ति करने से जीव का मोक्ष हो सकता हैं।

असली भक्ति साधना तो कबीर परमात्मा ने बताई जिसका प्रमाण अपने सभी धर्म के  सद्ग्रन्थों में लिखा हुआ।

काशी में करौंत   की कथा का रहस्य जानने के लिए  अवश्य देखे  संत रामपाल जी महाराज  का सत्संग सुप्रसिद्ध  चैंनलों पर सत्संग।
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Tuesday, June 23, 2020

Shree bhgwat Geeta

Shreebhgwad


गीता ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं बोला पवित्र गीता 11 श्लोक 21व46 में अर्जुन कह रहा है कि है सहत्र बाहु आप अपने उसी चतुर्भुज रूप में आइए काल ब्रह्म की 1000 भुजाएं हैं जबकि चार भुजाएं हैं ।


गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहां है कि तत्वदर्शी संत की प्राप्ति के पश्चात उस परम पद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए जहां जाने के पश्चात साधक लौट कर वापस नहीं आता है तथा मोक्ष प्राप्त करता है ।।


‘‘गीता अध्याय 15 श्लोक 1.4 का सारांश’’।।

 सृष्टि रूपी वृक्ष का वर्णन।।अध्याय 15 के श्लोक 1 में कहा है कि ऊपर को पूर्ण परमात्मा रूपी जड़ वाला नीचे को तीनोंगुण (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी) रूपी शाखा वाला संसार रूपी एकअविनाशी विस्तृत वृक्ष है। जैसे पीपल का वृक्ष है। उसकी डार व साखाएँ होती हैं। जिसकेछोटे-छोटे हिस्से (टहनियाँ) पते आदि हैं। जो संसार रूपी वृक्ष के सर्वांग जानता है, वह वेद केतात्पर्य को जानने वाला पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी संत है। कबीर परमेश्वर जी कहते हैं :--
कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड़ है, निरंजन (ब्रह्म) वाकि डार। तीनों देवा शाखा हैं, पात रूप संसार।।
कबीर, हम ही अलख अल्लाह हैं, मूल रूप करतार। अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, मैं ही सिरजनहार।।
यह उल्टा लटका हुए संसार रूपी वृक्ष है। ऊपर को जड़ें (पूर्णब्रह्म परमात्मा-परम अक्षरपुरुष) सतपुरुष है, अक्षर पुरुष (परब्रह्म) जमीन से बाहर दिखाई देने वाला तना है तथा ज्योतिनिरंजन (ब्रह्म/क्षर) डार है और तीनों देवा (ब्रह्मा-विष्णु-महेश) शाखा हैं। छोटी टहनियाँ और पत्तेदेवी-देवता व आम जीव जानों।
अध्याय 15 के श्लोक 2 में कहा है कि उस (अक्षर पुरुष रूपी) वृक्ष की नीचे और ऊपर गुणों(ब्रह्मा-रजगुण, विष्णु-सतगुण, शिव-तमगुण) रूपी फैली हुई विषय विकार (काम, क्रोध, मोह,लोभ, अहंकार) रूपी कोपलें व डाली (ब्रह्मा-विष्णु-शिव) रूपी। इस जीवात्मा को कर्मों के अनुसारबाँधने का मुख्य कारण है तथा नीचे पाताल लोक में, ऊपर स्वर्ग लोक में व्यवस्थित किए हुए हैं।

(गीता जी के अध्याय 14 के श्लोक 5 में प्रमाण है कि - हे महाबाहो (अर्जुन)! सतगुण, रजगुण, तथा तमगुण जोप्रकृति (माया) से उत्पन्न हुए हैं। ये तीनों गुण जीवात्मा को शरीर में बाँधते हैं।) अध्याय 15 के श्लोक 3 में गीता बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि इस (रचना) का न तो शुरुका ज्ञान, न अंत का और न ही वैसा स्वरूप (जैसा दिखाई देता है) पाया जाता है तथा यहाँ विचारकाल में अर्थात् तेरे मेरे इस गीता ज्ञान संवाद में मुझे भी इसकी अच्छी तरह स्थिति का ज्ञान नहींहै। इस स्थाई स्थिति वाले मजबूत संसार रूपी वृक्ष अर्थात् सृष्टि रचना को पूर्ण ज्ञान रूप (सूक्ष्मवेद के ज्ञान से) शस्त्रा से काट कर अर्थात् अच्छी तरह जान कर काल (ब्रह्म) व ब्रह्मा-विष्णु-शिवतीनों गुणों व पित्रों- भूतों- देवी- देवताओं, भैरां, गूगा पीर आदि से मन हट जाता है। इसलिए इससंसार रूपी वृक्ष को काटना कहा है।अध्याय 15 के श्लोक 4 में गीता ज्ञान दाता ने बताया है कि उपरोक्त तत्वदर्शी संत जिसकागीता अध्याय 15 श्लोक 1 व अध्याय 4 श्लोक 34 में भी वर्णन है मिलने के पश्चात उस स्थान(सतलोक-सच्चखण्ड) की खोज करनी चाहिए जिसमें गए हुए साधक फिर लौट कर (जन्म-मरणमें) इस संसार में नहीं आते अर्थात् अनादि मोक्ष प्राप्त करते हैं और जिस परमात्मा से आदि समयसे चली आ रही सृष्टि उत्पन्न हुई है। मैं काल ब्रह्म भी उसी अविगत पूर्ण परमात्मा की शरण में हूँ।उसी पूर्ण परमात्मा की ही भक्ति पूर्ण निश्चय के साथ करनी चाहिए, अन्य की नहीं।



गीता स्पष्ट लिखा हुआ कि  पूर्ण परम् अक्षर बह्म की भक्ति करने से ही जीव का मोक्ष होगा।
गीता  अध्याय 15 श्लोक 4 में कहां है तत्वज्ञान समझने के पश्चात उस मूल रूप परमेश्वर की परम पद यानी सतलोक की खोज करनी चाहिए जिसमें गए हुए साधक लौटकर संसार मे  कभी नहीं आते हैं और जिस परमेश्वर परम अक्षर पुरुष से पुरानी यानी आदिवाली सृष्टि उत्पन्न हुई है उस सनातन पूर्ण परमात्मा की शरण में मै  हहु यानी मेरा पूजा परमेश्वर इष्ट देव भी वही है पूर्ण  निश्चय के साथ उसकी परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए

आए जानते हैं और अधिक की परम अक्षर बह्म कौन तथा उसके पाने की विधि क्या?
अवश्य देखे इस सत्संग को।
7:30से8:30pm

Wednesday, June 17, 2020

Janmashtmi:Lord shree krishna

जन्माष्टमी


श्री कृष्ण जी के पांडवों द्वारा किए गए अश्वमेध यज्ञ में उपस्थित रहने के बाद भी वह यज्ञ संपूर्ण नहीं हुआ कि श्री कृष्ण जी के तीन लोक के भगवान  है और पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब जी है  जो अविनाशी है जिन्होंने दो रोटी खा कर 7 पीढ़ी  राज दिया  वही परमात्मा शक्तिशाली है ।


श्री कृष्ण जी तीन लोक के स्वामी है ये हमे पिछले जन्म का किया हुआ ही  हमे ये प्रधान कर सकते है।असंख्य ब्रमांड का स्वामी कबीर परमेश्वर जी है जो  हमारे ऊपर आये हुई सभी पाप कर्मों को काट देते है तथा व्यक्ति को सुखी जीवन प्रधान करते है।

श्री कृष्ण जी ने इंद्र जो  देवी देवताओं का राजा है उसकी पूजा भी छुड़वा कर उस एक परमात्मा  की भक्ति करने के लिए प्रेरणा दी थी जिस कारण उन्होंने गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्र के को कोप  बृजवासी की रक्षा की वह परमेश्वर कबीर जी है।

परमेश्वर कबीर साहिब जी ने अपने सतलोक से सशरीर आए थे और लाखों लोगों की उपस्थिति में सशरीर चले गई थे जबकि श्री कृष्ण का जन्म  मां की कोख से पैदा हुए  है और शिकारी के तीर से  मृत्यु को प्राप्त हुए वेदों में लिखा है कि भगवान कभी मां के गर्भ से जन्म नहीं लेता है।

श्री कृष्ण जी महाभारत का युद्ध चाह कर भी नही  रुकवा सके और जिसमे करोड़ों लोग मारे गए वही कबीर साहिब जी ने अपनी अंतिम समय मैं हिंदू मुस्लिम के बीच में होने  वाले महाविनाश को भी रोक लिया था केवल  शक्तिशाली परमात्मा तो केवल कबीर साहिब जी है।

श्री कृष्ण  जी बांसुरी बजाते थे तो आसपास की गोपियां और गाये आ कर सुनते थे परमेश्वर कबीर साहिब जी ने यमुना के किनारे एक बात बांसुरी बजाई थी तो यमुना का पानी स्थिर  हो गया सभी पशु पक्षी यहां तक की आसमान में देवता भी उस बांसुरी की मधुर आवाज को सुनने के लिए पृथ्वी पर आ गए थे



तो आए जानते हैं कि वह शक्तिशाली परमेश्वर कौन है तथा कहा पर रहता था किसने देखा एयर उसके पाने की विधि क्या है।
इन सभी बातों की जानकारी प्राप्त करने के लिए अवश्य देखे संत रामपाल जी महाराज के सत्संग सुप्रसिद्ध चैंनलों पर ।


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Tuesday, June 16, 2020

पूजा तथा साधना में अंतर ?

प्रश्न :- काल ब्रह्म की पूजा करनी चाहिए या नहीं? गीता में प्रमाण दिखाऐं।उत्तरः- नहीं करनी चाहिए। पहले आप जी को पूजा तथा साधना का भेद बताते हैं।भक्ति अर्थात् पूजा :- जैसे हमारे को पता है कि पृथ्वी के अन्दर मीठा शीतलजल है। उसको प्राप्त कैसे किया जा सकता है? उसके लिए बोकी के द्वारा जमीन में सुराख किया जाता है, उस सुराख (ठवतम) में लोहे की पाईप डाली जाती है,फिर हैण्डपम्प (नल) की मशीन लगाई जाती है, तब वह शीतल जीवन दाता जलप्राप्त होता है।हमारा पूज्य जल है, उसको प्राप्त करने के लिए प्रयोग किए उपकरण तथा प्रयत्न साधना जानें। यदि हम उपकरणों की पूजा में लगे रहे तो जल प्राप्त नहीं कर सकते, उपकरणों द्वारा पूज्य वस्तु प्राप्त होती है।


गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में तो गीता ज्ञान दाता ने बता दिया कितीनों गुणों (रजगुण श्री ब्रह्मा जी, सतगुण श्री विष्णु जी तथा तमगुण श्री शिव जी)की भक्ति व्यर्थ है। फिर गीता अध्याय 7 के श्लोक 16.17.18 में गीता ज्ञान दाताब्रह्म ने अपनी भक्ति से होने वाली गति अर्थात् मोक्ष को “अनुत्तम” अर्थात् घटियाबताया है। बताया है कि मेरी भक्ति चार प्रकार के व्यक्ति करते हैं।
1. अर्थार्थी :- धन लाभ के लिए वेदों अनुसार अनुष्ठान करने वाले।
2. आर्त :- संकट निवारण के लिए वेदों अनुसार अनुष्ठान करने
वाले।
3. जिज्ञासु :- परमात्मा के विषय में जानने के इच्छुक।(ज्ञान ग्रहण करके स्वयं वक्ता बन जाने वाले)इन तीनों प्रकार के ब्रह्म पुजारियों को व्यर्थ बताया है।

4. ज्ञानी :- ज्ञानी को पता चलता है कि मनुष्य जन्म बड़ा दुर्लभ है।
         मनुष्य जीवन प्राप्त करके आत्म-कल्याण कराना चाहिए। उन्हें यह भी ज्ञान हो जाता हैकि अन्य देवताओं की पूजा से मोक्ष लाभ होने वाला नहीं है। इसलिए एक परमात्माकी भक्ति अनन्य मन से करने से पूर्ण मोक्ष संभव है। उनको तत्वदर्शी सन्त नमिलने से उन्होंने जैसा भी वेदों को जाना, उसी आधार से ब्रह्म को एक समर्थ प्रभुमानकर यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्रा 15 से ओम् नाम लेकर भक्ति की, परन्तु पूर्ण मोक्षनहीं हुआ। ओम् (ऊँ) नाम ब्रह्म साधना का है, उससे ब्रह्मलोक प्राप्त होता है जोकिपूर्व में प्रमाणित किया जा चुका है। गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा है कि ब्रह्मलोक प्रयन्त सब लोक पुनरावर्ती में हैं अर्थात् ब्रह्म लोक में गए साधक भी पुनःलौटकर संसार में जन्म-मृत्यु के चक्र में गिरते हैं।काल ब्रह्म की साधना से वह मोक्ष प्राप्त नहीं होता जो गीता अध्याय 15श्लोक 4 में बताया है कि “तत्वज्ञान से अज्ञान को काटकर परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार मेंकभी वापिस नहीं आते।

गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि ये ज्ञानीआत्मा (जो चौथे नम्बर के ब्रह्म के साधक कहें हैं) हैं तो उदार अर्थात् नेक, परंतुये तत्वज्ञान के अभाव से मेरी अनुत्तम् गति में ही स्थित रहे। गीता ज्ञान दाता नेअपनी साधना से होने वाली गति को भी अनुत्तम अर्थात् घटिया कहा है, इसलिएब्रह्म पूजा करना भी उचित नहीं।कारण :- एक चुणक नाम का ऋषि ज्ञानी आत्मा था। उसने ओम् (ऊँ) नामका जाप तथा हठयोग हजारों वर्ष किया। जिससे उसमें सिद्धियाँ आ गई। ब्रह्म कीसाधना करने से जन्म-मृत्यु, स्वर्ग-नरक का चक्र सदा बना रहेगा क्योंकि गीताअध्याय 2 श्लोक 12ए गीता अध्याय 4 श्लोक 5ए गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में गीताज्ञान दाता ब्रह्म ने कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे अनेकों जन्म हो चुके हैं, तू नहींजानता, मैं जानता हूँ। तू, मैं तथा ये सर्व राजा लोग पहले भी जन्में थे, आगे भीजन्मेंगे। यह न सोच कि हम सब अब ही जन्में हैं। मेरी उत्पत्ति को महर्षिजन तथाये देवता नहीं जानते क्योंकि ये सब मेरे से उत्पन्न हुए हैं।

जो शास्त्रा विधि अनुसार भक्ति करने से सिद्धि प्राप्त होती है, वह गेहूँ काभुस (तूड़ा) समझें जो पशुओं के लिए उपयोगी तथा खाने में सुगम होता है। भावार्थहै कि शास्त्राविधि अनुसार साधना न करने से जो सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, वे साधकको नष्ट करती हैं क्योंकि अज्ञानतावश ऋषिजन उनका प्रयोग करके किसी कीहानि कर देते हैं, किसी को आशीर्वाद देकर अपनी भक्ति की शक्ति जो ¬ नामके जाप से होती है, उसको समाप्त करके फिर से खाली हो जाते हैं।जैसे चुणक ऋषि जी ने मानधाता चक्रवर्ती राजा की 72 करोड़ सेना का नाशकर दिया, अपनी भक्ति की सिद्धि भी खो दी। सूक्ष्मवेद में कहा है कि :-गरीब, बहतर क्षौणी क्षय करी, चुणक ऋषिश्वर एक।देह धारें जौरा (मृत्यु) फिरैं, सब ही काल के भेष।।भावार्थ :- ऋषियों में सर्वश्रेष्ठ ऋषि चुणक जी ने 72 करोड़ सेना का नाशकर दिया। ये दिखाई तो देते हैं महात्मा, लेकिन जब इनसे पाला पड़ता है तो येनिकलते हैं सर्प जैसे, जरा-सी बात पर श्राप दे देना, किसी से बेमतलब पंगा लेलेना इनके लिए आम बात होती है।


           अधिक जानकारी के लिए अवश्य                                       देखे संत रामपाल जी महाराज के                                        सुप्रसिद्ध चैंनलों पर।
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Tuesday, June 9, 2020

Bible

Bible

रूढ़िवादी यीशु बाइबिल में कहा गया है कि भगवान कबीर हैं। और यह एकमात्र पुस्तक नहीं है जो इसे वेद, कुरान के रूप में बताती है, गुरु ग्रंथ साहिब भी इसी बिंदु को समझाते हैं।


अब्राहमिक धर्मों में 4 महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं। यीशु को बाइबल दी गई जो एक पवित्र आत्मा थी। सर्वोच्च परमेश्वर अल्लाह हु अकबर खुद अपनी जानकारी देने आता है। सभी के पिता भगवान कबीर हैं।

स्वाद के लिए किसी भी जानवर को मत मारो। कुछ लोग कहते हैं कि गाय को मारना पाप है जबकि दूसरे का सुअर के लिए भी यही कहना है। भगवान कहते हैं कि उनके द्वारा बनाई गई प्रत्येक आत्मा उनके पुत्र या पुत्री है इसलिए किसी को मारना भी उतना ही पाप है।


बाइबल में लिखा है कि मनुष्य को प्रभु ने अपने ही स्वरूप  जैसा बनाया और 6 दिन में सृष्टि  रचना के बाद 7 वे  दिन तख्त पर जा विराजा  वह प्रभु  कबीर जी है।


अधिक जानकारी के लिए
अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज जी के सुप्रसिद्ध चैंनलों  पर सत्संग 
👉साधना टीवी पर 7:30 से 8:30 पीएम 
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Thursday, June 4, 2020

कबीर साहेब का प्रकट दिवस बनाया जाता हैं न कि जयंती।।

 परमात्मा कबीर साहिब जी 600 साल पहले काशी में एक शिशु के रूप में कमल के फूल पर प्रकट हुए थे और हजारों लोगों की उपस्थिति में मगहर से सतलोक गए थे। शव के स्थान पर फूल मिले थे, जिसके प्रमाण मगहर में मौजूद हैं। इसलिए, कबीर साहिब का प्रकट दिवस मनाया जाता है, न कि जयंती।

कबीर परमात्मा माँ से जन्म नहीं लेते। उनका शरीर पाँच  तत्ववों से बने रक्त-मांस का नहीं है, बल्कि एक तत का अमर शरीर है, और इसलिए प्रकट दिवस मनाया जाता है, न कि कबीर साहेब की जयंती।

 चाम लाहु न मोरे, जन सतनाम उपसी।
 तारण तरण अभय पद (मोक्ष) दाता, मुख हूं कबीर अविनाशी ।।

वर्ष 1398 में, ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन, कबीर परमेस्वर ब्रह्म मुहूर्त में सत्यलोक से आए और लहराटारा तालाब में कमल के फूल पर विराजमान हुए। जहां से निःसंतान बुनकर दंपत्ति नीरू-नीमा उसे ले गए। प्रत्येक वर्ष इस अवसर पर कबीर प्रकट दिवस मनाया जाता है।
 कबीर, ना मेरा जनम न गरभ बसरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल प्र डेरा, यहां जुलाहे न पावे ।।

परमारेश्वर कबीर साहिब जी 600 साल पहले काशी में एक शिशु के रूप में कमल के फूल पर दिखाई दिए और मगहर से चले गए। हजारों लोगों की उपस्थिति में, वह अपने शरीर के साथ सतलोक गया। शव के स्थान पर फूल मिले थे, जिसके प्रमाण आज भी मगहर में मौजूद हैं। इसलिए, कबीर साहिब का प्रकट दिवस मनाया जाता है, न कि जयंती।
* कबीर साहेब स्वयं प्रकट होते हैं, इसलिए अभिव्यक्ति का दिन मनाया जाता है *
 ऋग्वेद मंडल १०, सूक्त ४, मन्त्र ३ में स्पष्ट है कि माता परमात्मा को जन्म नहीं देती है, लेकिन वे स्वयं अपनी आत्मा को काल के बंधन से छुड़ाने के लिए अपनी शब्द शक्ति द्वारा उन्हें शिशु रूप में प्रकट करते हैं।
 इस बात के प्रमाण हैं कि कबीर परमेश्वर ने काशी लाहरतार सरोवर में कमल के फूल पर स्वयं को प्रकट किया, जिसका चित्रण अष्टानंद ऋषि थे।

कबीर परमेश्वर का प्रकट दिवस मनाया जाता है, जयंती नहीं। जो जन्म लेता है उसके लिए जयंती मनाई जाती है। कबीर परमेश्वर जन्म और मृत्यु से मुक्त हैं और वे अविनाशी हैं। काशी में लहराटारा तालाब में कमल के फूल और माघ में सतलोक जाने के बाद शरीर के स्थान पर फूल खोजने के साक्ष्य मिले हैं। इसलिए, कबीर परमेश्वर का प्रकट दिवस मनाया जाता है।
💢💢
👉 Note
#कबीरसाहेब  जी प्रकट दिवस  के उपलक्ष में  कल यानी 5 जून साधना चैंनल 📺 पर क सुबह🕗 9:00बजे  से 12:00तक सत्संग प्रसारित किया जायेगा।
 अवश्य देखे।।

Wednesday, June 3, 2020

पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी का अदभुत ज्ञान !

आज तक किसी ऋषि, महर्षि धर्मगुरू ने
सृष्टि रचना की सही जानकारी नहीं दी..
कबीर परमेश्वर जी ने सृष्टि रचना का यथार्थ जानकारी शास्त्र प्रमाण सहित दी।
 कबीर परमेश्वर ने आकर यथार्थ भक्ति विधि बताई, जो अत्यधिक सरल है जिसे रोजमर्रा के काम करते हुए भी कर सकते हैं।
नाम उठत, नाम बैठत, नाम सोवत जाग वे।
नाम खाते, नाम पीते, नाम सेती लाग वे।।

 कबीर परमेश्वर जी ने सृष्टि की रचना का वास्तविक ज्ञान कराया व बयाता किस प्रभु की भक्ति करने से सर्व सुख व पूर्ण मोक्ष मिल सकता है।

धर्मदास यह जग बौराना, कोई न जाने पद निरवाना,
यही कारण मैं कथा पसारा, जग से कहियो एक राम न्यारा।
कबीर परमेश्वर जी ने मानव को समझाया कि गुरू के बिना भक्ति करना निष्फल है। राम कृष्ण ने भी गुरु बनाकर भक्ति की इसलिए गुरू बनाना आवश्यक है। गुरू पूरा हो
 कबीर साहेब जी से पहले केवल तीन लोक तक का ज्ञान था। कबीर परमात्मा ने सतलोक (अमर लोक) का भेद बताया तथा उसकी प्राप्ति की भक्ति विधि बताई।

कबीर परमेश्वर ने बताया कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश की भी जन्म तथा मृत्यु होती है। इनकी माता दुर्गा तथा पिता काल (ब्रह्म) हैं।
कबीर, मां अष्टांगी पिता निरंजन, ये जम दारुण वंशन अंजन।
तीन पुत्र अष्टंगी जाए, ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराए।
 कौन ब्रह्मा का पिता है, कौन विष्णु की मां
शंकर का दादा कौन है, हमको दे बता‌?
कबीर परमेश्वर जी ने सृष्टि रचना में ब्रह्मा विष्णु महेश के माता-पिता और दादा की संपूर्ण जानकारी प्रमाण सहित बताई।

 कबीर परमेश्वर जी ने गुरू और सतगुरू में भेद बताया तथा सच्चे गुरु के लक्षण बताए।
सतगुरु के लक्षण कहु, मधुरे बेन विनोद, चार वेद छः सास्त्र, वो कह अट्ठारह बोध।। पूर्ण परमात्मा कौन है, कैसा है, कहां रहता है, कैसे मिलता है और किसने देखा है?
यथार्थ जानकारी प्रमाण सहित कबीर परमात्मा जी ने बताई।
कबीर साहिब जी ने तत्वज्ञान दिया कि मानव जीवन में सतगुरु बनाकर भक्ति करना परमावश्यक है। सच्चे गुरु की शरण में जाकर दीक्षा लेने से ही पूर्ण लाभ मिलेगा, अन्यथा मानव जीवन बर्बाद है।

 कबीर परमात्मा द्वारा बताई सृष्टि रचना की जानकारी से ही हमे पता चलता है कि गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण में प्रवेश करके काल/ब्रह्म ने बोला, ब्रह्मा विष्णु शिव भी जन्म मृत्यु में है, तथा इनके भी माता पिता है। इसका प्रमाण अन्य शास्त्रों में भी मिलता है कबीर परमेश्वर जी ने सभी धर्मों के लोगों को संदेश दिया कि सब मानव एक परमात्मा की संतान है। परमात्मा ने सबको एक बनाया है। अज्ञानता वश हम अलग-अलग जाति धर्मों में बंट गये। भगवान के घर कोई जाति धर्म नहीं है।
 सर्वप्रथम पूर्ण परमात्मा कबीर परमेश्वर ने ही बताया कि अलग-अलग देवों की भक्ति से मिलने वाले लाभ का स्तर भी अलग-अलग है। परंतु सर्वोच्च स्तर पूर्ण परमात्मा का ही है। जो मोक्ष दायक भी है।

 तीन देव की जो करते भक्ति, उनकी की भी न होवै मुक्ति।
कबीर परमेश्वर ने बताया कि रजगुण ब्रह्माजी, सतगुण विष्णुजी, तमगुण शिवजी तक की साधना करने वाले साधकों की मोक्ष नहीं हो सकती कबीर परमेश्वर जी ने लोगों को नशा, मांस भक्षण तथा शराब सेवन से दूर रहने की प्रेरणा दी। बुराइयों से मनुष्य के शारीरिक दुर्गति के साथ आध्यात्मिक पतन भी होता है। कभी परमेश्वर जी ने मानव को समझाते हुए कहा कि मनुष्य जीवन में भक्ति करना अत्यावश्यक है अन्यथा जीवन हानि होगी तथा नरक व चौरासी का कष्ट भुगतना पडेगा।
कबीर, मानुष जन्म पाय कर, नहीं रटे हरि नाम।
जैसे कुआं जल बिना, बनवाया किस काम।।

वह पूर्ण परमात्मा केवल कबीर साहेब जी उन्होंने ही अपने सभी धर्मो के सद्ग्रन्थों का ज्ञान मानव समाज को दिया है।
वेद प्रमाणित करते है कि वह कबीर देव है उसकी जानकारी आज संत रामपाल जी महाराज जी दे रहे हैं।

अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज जी के सुप्रसिद्ध चैंनलों  पर सत्संग
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Tuesday, June 2, 2020

हर युग मे कबीर साहेब लीलाए करते है।

मीराबाई कृष्ण जी की भक्ति में लीन थीं और मोक्ष के मार्ग से वंचित थीं। अपनी प्रिय आत्मा को अपनी शरण में लेने के लिए, एक बार भगवान कबीर जी रविदास जी के साथ उनके शहर में सत्संग करने पहुँचे। जब मीराबाई ने उस सत्संग को सुना, तो वह अद्भुत ज्ञान से प्रेरित थी। उसने भगवान कबीर की शरण ली और उसका कल्याण किया

भगवान कबीर जी जिंदा महात्मा के रूप में 7 साल की उम्र में दादू साहिब से मिले और उन्हें ज्ञान समझाया और उन्हें सतलोक दिखाया।
इसलिए, भगवान कबीर जी की महिमा करते हुए; दादू साहेब जी कहते हैं "जिन मोकु ​​निज नाम दीया, सोई सतगुरु हमार, दादू दोसरा कोई नाहीं, कबीर सिरजनहार"


हनुमान जी का कल्याण
श्री राम जी के अयोध्या लौटने और सीता द्वारा महल से अपमानित और निष्कासित किए जाने के बाद, हनुमान जी भगवान कबीर जी से मिले जो त्रेता में ऋषि मुनींद्र के रूप में प्रकट हुए थे। सच्चे उपदेश देकर उन्होंने इस संत आत्मा को मोक्ष का मार्ग दिखाया



स्वामी रामानंद जी से ज्ञान चर्चा के लिए आए गोरखनाथ जी से परमेश्वर कबीर जी ने खुद चर्चा की और गोरखनाथ जी को पराजित कर सत्य ज्ञान से परिचित करवा मोक्ष की राह दिखाई।

 कबीर परमात्मा ने चीरहरण में द्रौपदी का चीर बढ़ाकर लाज बचाई।
गरीब, पीतांबर कूं पारि करि, द्रौपदी दिन्हीं लीर।
अंधे कू कोपीन कसि, धनी कबीर बधाये चीर।।
नीरू को धन प्राप्ति


असली राम कबीर जी हैं, उनके हर तमाशे के साथ भगवान की शक्ति का एहसास होता है।
सतलोक से कमल के फूल पर उनका अवतरण हुआ।
एक अनपढ़ का तमाशा खेलते हुए उन्होंने ऐसा ज्ञान दिया जो शास्त्रों में संस्कृत जानने वाले लोगों द्वारा आज तक नहीं पाया गया।
मृतक कमल और कमली का जीवन बहाल करना।
उनका सारा समय दूसरों को परमात्मा का एहसास कराने और फिर मगहर से पूरे शरीर में सतलोक लौटने का था।
वह असली राम कौन है।

और भी बहुत सारी लीलाए है कबीर साहेब जी उनका मुख्य उद्देश्य यही होता है मानव समाज को सतज्ञान व सतभक्ति देकर कल्याण करना है।

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भैया दूज क्या है??

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