Tuesday, June 23, 2020

Shree bhgwat Geeta

Shreebhgwad


गीता ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं बोला पवित्र गीता 11 श्लोक 21व46 में अर्जुन कह रहा है कि है सहत्र बाहु आप अपने उसी चतुर्भुज रूप में आइए काल ब्रह्म की 1000 भुजाएं हैं जबकि चार भुजाएं हैं ।


गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहां है कि तत्वदर्शी संत की प्राप्ति के पश्चात उस परम पद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए जहां जाने के पश्चात साधक लौट कर वापस नहीं आता है तथा मोक्ष प्राप्त करता है ।।


‘‘गीता अध्याय 15 श्लोक 1.4 का सारांश’’।।

 सृष्टि रूपी वृक्ष का वर्णन।।अध्याय 15 के श्लोक 1 में कहा है कि ऊपर को पूर्ण परमात्मा रूपी जड़ वाला नीचे को तीनोंगुण (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी) रूपी शाखा वाला संसार रूपी एकअविनाशी विस्तृत वृक्ष है। जैसे पीपल का वृक्ष है। उसकी डार व साखाएँ होती हैं। जिसकेछोटे-छोटे हिस्से (टहनियाँ) पते आदि हैं। जो संसार रूपी वृक्ष के सर्वांग जानता है, वह वेद केतात्पर्य को जानने वाला पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी संत है। कबीर परमेश्वर जी कहते हैं :--
कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड़ है, निरंजन (ब्रह्म) वाकि डार। तीनों देवा शाखा हैं, पात रूप संसार।।
कबीर, हम ही अलख अल्लाह हैं, मूल रूप करतार। अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, मैं ही सिरजनहार।।
यह उल्टा लटका हुए संसार रूपी वृक्ष है। ऊपर को जड़ें (पूर्णब्रह्म परमात्मा-परम अक्षरपुरुष) सतपुरुष है, अक्षर पुरुष (परब्रह्म) जमीन से बाहर दिखाई देने वाला तना है तथा ज्योतिनिरंजन (ब्रह्म/क्षर) डार है और तीनों देवा (ब्रह्मा-विष्णु-महेश) शाखा हैं। छोटी टहनियाँ और पत्तेदेवी-देवता व आम जीव जानों।
अध्याय 15 के श्लोक 2 में कहा है कि उस (अक्षर पुरुष रूपी) वृक्ष की नीचे और ऊपर गुणों(ब्रह्मा-रजगुण, विष्णु-सतगुण, शिव-तमगुण) रूपी फैली हुई विषय विकार (काम, क्रोध, मोह,लोभ, अहंकार) रूपी कोपलें व डाली (ब्रह्मा-विष्णु-शिव) रूपी। इस जीवात्मा को कर्मों के अनुसारबाँधने का मुख्य कारण है तथा नीचे पाताल लोक में, ऊपर स्वर्ग लोक में व्यवस्थित किए हुए हैं।

(गीता जी के अध्याय 14 के श्लोक 5 में प्रमाण है कि - हे महाबाहो (अर्जुन)! सतगुण, रजगुण, तथा तमगुण जोप्रकृति (माया) से उत्पन्न हुए हैं। ये तीनों गुण जीवात्मा को शरीर में बाँधते हैं।) अध्याय 15 के श्लोक 3 में गीता बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि इस (रचना) का न तो शुरुका ज्ञान, न अंत का और न ही वैसा स्वरूप (जैसा दिखाई देता है) पाया जाता है तथा यहाँ विचारकाल में अर्थात् तेरे मेरे इस गीता ज्ञान संवाद में मुझे भी इसकी अच्छी तरह स्थिति का ज्ञान नहींहै। इस स्थाई स्थिति वाले मजबूत संसार रूपी वृक्ष अर्थात् सृष्टि रचना को पूर्ण ज्ञान रूप (सूक्ष्मवेद के ज्ञान से) शस्त्रा से काट कर अर्थात् अच्छी तरह जान कर काल (ब्रह्म) व ब्रह्मा-विष्णु-शिवतीनों गुणों व पित्रों- भूतों- देवी- देवताओं, भैरां, गूगा पीर आदि से मन हट जाता है। इसलिए इससंसार रूपी वृक्ष को काटना कहा है।अध्याय 15 के श्लोक 4 में गीता ज्ञान दाता ने बताया है कि उपरोक्त तत्वदर्शी संत जिसकागीता अध्याय 15 श्लोक 1 व अध्याय 4 श्लोक 34 में भी वर्णन है मिलने के पश्चात उस स्थान(सतलोक-सच्चखण्ड) की खोज करनी चाहिए जिसमें गए हुए साधक फिर लौट कर (जन्म-मरणमें) इस संसार में नहीं आते अर्थात् अनादि मोक्ष प्राप्त करते हैं और जिस परमात्मा से आदि समयसे चली आ रही सृष्टि उत्पन्न हुई है। मैं काल ब्रह्म भी उसी अविगत पूर्ण परमात्मा की शरण में हूँ।उसी पूर्ण परमात्मा की ही भक्ति पूर्ण निश्चय के साथ करनी चाहिए, अन्य की नहीं।



गीता स्पष्ट लिखा हुआ कि  पूर्ण परम् अक्षर बह्म की भक्ति करने से ही जीव का मोक्ष होगा।
गीता  अध्याय 15 श्लोक 4 में कहां है तत्वज्ञान समझने के पश्चात उस मूल रूप परमेश्वर की परम पद यानी सतलोक की खोज करनी चाहिए जिसमें गए हुए साधक लौटकर संसार मे  कभी नहीं आते हैं और जिस परमेश्वर परम अक्षर पुरुष से पुरानी यानी आदिवाली सृष्टि उत्पन्न हुई है उस सनातन पूर्ण परमात्मा की शरण में मै  हहु यानी मेरा पूजा परमेश्वर इष्ट देव भी वही है पूर्ण  निश्चय के साथ उसकी परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए

आए जानते हैं और अधिक की परम अक्षर बह्म कौन तथा उसके पाने की विधि क्या?
अवश्य देखे इस सत्संग को।
7:30से8:30pm

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