पुरी में श्री जगन्नाथ जी का मन्दिर कैसे बना ??
उड़ीसा प्रांत में एक इन्द्रदमन नाम का राजा था। वह भगवान श्री कृष्ण जी का अनन्यभक्त था। एक रात्रा को श्री कृष्ण जी ने राजा को स्वपन में दर्शन देकर कहा कि जगन्नाथ नाम से मेरा एक मन्दिर बनवा दे। श्री कृष्ण जी ने यह भी कहा था कि इस मन्दिर में मूर्तिपूजा नहीं करनी है। केवल एक संत छोड़ना है जो दर्शकों को पवित्रा गीता अनुसार ज्ञान प्रचारकरे। समुद्र तट पर वह स्थान भी दिखाया जहाँ मन्दिर बनाना था। सुबह उठकर राजाइन्द्रदमन ने अपनी पत्नी को बताया कि आज रात्रा को भगवान श्री कृष्ण जी दिखाई दिए।मन्दिर बनवाने के लिए कहा है। रानी ने कहा शुभ कार्य में देरी क्या? सर्व सम्पत्ति उन्हीं की दी हुई है। उन्हीं को समर्पित करने में क्या सोचना है? राजा ने उस स्थान पर मन्दिर बनवा दिया।।
जगन्नाथ मंदिर का रहस्य |
- पांच बार मंदिर टूटा और दुबारा बना तथा किसने बनाया इसका रहस्य क्या है ??
मन्दिर बनने के बाद समुद्री तुफान उठा, मन्दिर को तोड़ दिया। निशान भी नहीं बचा कि यहाँ मन्दिर था। ऐसे राजा ने पाँच बार मन्दिर बनवाया। पाँचों बार समुद्र ने तोड़ दिया।राजा ने निराश होकर मन्दिर न बनवाने का निर्णय ले लिया। यह सोचा कि न जाने समुद्रमेरे से कौन-से जन्म का प्रतिशोध ले रहा है। कोष रिक्त हो गया, मन्दिर बना नहीं। कुछ समयउपरान्त पूर्ण परमेश्वर (कविर्देव) ज्योति निरंजन (काल) को दिए वचन अनुसार राजा इन्द्रदमनके पास आए तथा राजा से कहा आप मन्दिर बनवाओ। अब के समुद्र मन्दिर (महल) नहीं तोड़ेगा। राजा ने कहा संत जी मुझे विश्वास नहीं है। मैं भगवान श्री कृष्ण (विष्णु) जी के आदेशसे मन्दिर बनवा रहा हूँ। श्री कृष्ण जी समुद्र को नहीं रोक पा रहे हैं। पाँच बार मन्दिर बनवा चुका हूँ, यह सोच कर कि कहीं भगवान मेरी परीक्षा ले रहे हों। परन्तु अब तो परीक्षा देने योग्यभी नहीं रहा हूँ क्योंकि कोष भी रिक्त हो गया है। अब मन्दिर बनवाना मेरे वश की बात नहीं।परमेश्वर ने कहा इन्द्रदमन जिस परमेश्वर ने सर्व ब्रह्मण्डां की रचना की है, वही सर्व कार्य करने में सक्षम है, अन्य प्रभु नहीं। मैं उस परमेश्वर की वचन शक्ति प्राप्त हूँ। मैं समुद्र को रोक सकता हूँ (अपने आप को छुपाते हुए यर्थाथ कह रहे थे)।
जगन्नाथ मंदिर पूजा |
छटवीं बार मंदिर किसने बनाया- उसका रहस्य ??
प्रभु कबीर जी (कविर्देव) ने कहा कि जिस तरफ से समुद्र उठ करआता है, वहाँ समुद्र के किनारे एक चौरा (चबूतरा) बनवा दे। जिस पर बैठ कर मैं प्रभु की भक्तिकरूंगा तथा समुद्र को रोकूंगा।राजा ने एक बड़े पत्थर को कारीगरों से चबूतरा बनवाया, परमेश्वर कबीर उस परबैठ गए। छटी बार मन्दिर बनना प्रारम्भ हुआ। उसी समय एक नाथ परम्परा के सिद्ध महात्माआ गए। नाथ जी ने राजा से कहा राजा बहुत अच्छा मन्दिर बनवा रहे हो, इसमें मूर्ति भी स्थापित करनी चाहिए। मूर्ति बिना मन्दिर कैसा? यह मेरा आदेश है। राजा इन्द्रदमन ने हाथजोड़ कर कहा नाथ जी प्रभु श्री कृष्ण जी ने मुझे स्वपन में दर्शन दे कर मन्दिर बनवाने काआदेश दिया था तथा कहा था कि इस महल में न तो मूर्ति रखनी है, न ही पाखण्ड पूजा करनीहै। राजा की बात सुनकर नाथ ने कहा स्वपन भी कोई सत होता है। मेरे आदेश का पालन कीजिए तथा चन्दन की लकड़ी की मूर्ति अवश्य स्थापित कीजिएगा।
भक्ति साधना जगन्नाथ मंदिर |
जगन्नाथ मंदिर में मूर्तियों के हाथ और पैरों के पंजे पूरे क्यों नही बने ??
कारीगर वेश में प्रभु ने राजा से कहा मैंने सुना है कि प्रभु के मन्दिर के लिए मूर्तियाँ पूर्ण नहीं हो रही हैं। मैं 80 वर्ष का वृद्ध हो चुका हूँ तथा 60 वर्ष का अनुभव है।चन्दन की लकड़ी की मूर्ति प्रत्येक कारीगर नहीं बना सकता। यदि आप की आज्ञा हो तो सेवक उपस्थित है। राजा ने कहा कारीगर आप मेरे लिए भगवान ही कारीगर बन कर आये लगते हो।मैं बहुत चिन्तित था। सोच ही रहा था कि कोई अनुभवी कारीगर मिले तो समस्या का समाधान बने। आप शीघ्र मूर्तियाँ बना दो। वृद्ध कारीगर रूप में आए कविर्देव (कबीर प्रभु) ने कहा राजन मुझे एक कमरा दे दो, जिसमें बैठ कर प्रभु की मूर्ति तैयार करूंगा। मैं अंदर से दरवाजा बंद करके स्वच्छता से मूर्ति बनाऊंगा। ये मूर्तियां जब तैयार हो जायेंगी तब दरवाजा खुलेगा, यदिबीच में किसी ने खोल दिया तो जितनी मूर्तियाँ बनेगी उतनी ही रह जायेंगी। राजा ने कहा जैसाआप उचित समझो वैसा करो।
प्रभु का भेजा एक अनुभवी 80 वर्षीय कारीगर बन्द कमरें में मूर्ति बना रहा है। उसने कहा है कि मूर्तियाँ बन जाने पर मैं अपने आप द्वार खोल दूंगा। यदि किसी ने बीच में द्वार खोल दिया तो जितनी मूर्तियाँ बनी होंगी उतनी ही रह जायेंगी। आज उसे मूर्ति बनाते बारह दिन हो गये। न तो बाहर निकला है, न ही जल पानतथा आहार ही किया है। नाथ जी ने कहा कि मूर्तियाँ देखनी चाहिये, कैसी बना रहा है? बनने के बाद क्या देखना है। ठीक नहीं बनी होंगी तो ठीक बनायेंगे। यह कहकर नाथ जी राजा इन्द्रदमन को साथ लेकर उस कमरे के सामने गए जहाँ मूर्ति बनाई जा रही थी तथा आवाज लगाई कारीगर द्वार खोलो। कई बार कहा परन्तु द्वार नहीं खुला तथा जो खट-खट की आवाज आ रही थी, वह भी बन्द हो गई। नाथ जी ने कहा कि 80 वर्षीय वृद्ध बता रहे हो, बारह दिन खाना-पिना भी नहीं किया है। अब आवाज भी बंद है, कहीं मर न गया हो। धक्का मार कर दरवाजा तोड़ दिया, देखा तो तीन मूर्तियाँ रखी थी, तीनों के हाथ के व पैरों के पंजे नहीं बने थे। कारीगर अन्तर्ध्यान था।
मूर्ति स्थापना हो जाने के कुछ दिन पश्चात् लगभग 40 फूट ऊँचा समुद्र का जल उठा जिसे समुद्री तुफान कहते हैं तथा बहुत वेग से मन्दिर की ओर चला। सामने कबीर परमेश्वरचौरा (चबुतरे) पर बैठे थे। अपना एक हाथ उठाया जैसे आर्शीवाद देते हैं, समुद्र उठा का उठारह गया तथा पर्वत की तरह खड़ा रहा, आगे नहीं बढ़ सका। विप्र रूप बना कर समुद्र आयातथा चबूतरे पर बैठे प्रभु से कहा कि भगवन आप मुझे रास्ता दे दो, मैं मन्दिर तोड़ने जाऊंगा।प्रभु ने कहा कि यह मन्दिर नहीं है। यह तो महल (आश्रम) है। इस में विद्वान् पुरुष रहा करेगा तथा पवित्रा गीता जी का ज्ञान दिया करेगा। आपका इसको विधवंश करना शोभा नहीं देता।समुद्र ने कहा कि मैं इसे अवश्य तोडूंगा। प्रभु ने कहा कि जाओ कौन रोकता है? समुद्र ने कहा कि मैं विवश हो गया हूँ। आपकी शक्ति अपार है। मुझे रस्ता दे दो प्रभु। परमेश्वर कबीर साहेब जी ने पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो? विप्र रूप में उपस्थित समुद्र ने कहा कि जब यहश्री कृष्ण जी त्रोतायुग में श्री रामचन्द्र रूप में आया था तब इसने मुझे अग्नि बाण दिखा कर बुरा भला कह कर अपमानित करके रास्ता मांगा था। मैं वह प्रतिशोध लेने जा रहा हूँ।परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि प्रतिशोध तो आप पहले ही ले चुके हो। आपने द्वारिका को डूबो रखा है। समुद्र ने कहा कि अभी पूर्ण नहीं डूबा पाया हूँ, आधी रहती है। वह भी कोई प्रबल शक्ति युक्त संत सामने आ गया था जिस कारण से मैं द्वारिका को पूर्ण रूपेण नहीं समापाया। अब भी कोशिश करता हूँ तो उधर नहीं जा पा रहा हूँ। उधर जाने से मुझे बांध रखा है।।
रहस्य जगन्नाथ पुरी का |
जगन्नाथ मंदिर में छुआछूत क्यों नही है इसका रहस्य क्या ??
कुछ दिन पश्चात जिस पांडे ने प्रभु कबीर जी को शुद्र रूप में धक्का मारा था उसको कुष्ट रोग हो गया। सर्व औषधी करने पर भी स्वस्थ नहीं हुआ। कुष्ट रोग का कष्ट अधिक सेअधिक बढ़ता ही चला गया। सर्व उपासनायें भी की, श्री जगन्नाथ जी से रो-रोकर संकट निवार्णके लिए प्रार्थना की, परन्तु सर्व निष्फल रही। स्वपन में श्री कृष्ण जी ने दर्शन दिए तथा कहापांडे उस संत के चरण धोकर चरणामृत पान कर जिसको तुने मन्दिर के मुख्य द्वार पर धक्का मारा था। तब उसके आशीर्वाद से तेरा कुष्ट रोग ठीक हो सकता है। यदि उसने तुझे हृदयसे क्षमा किया तो, तेरा कुष्ट रोग समाप्त होगा अन्यथा नहीं। मरता क्या नहीं करता?
वह मुख्य पांडा सवेरे उठा। कई सहयोगी पांडों को साथ लेकर उस स्थान पर गया जहाँ पर प्रभु कबीर जी शुद्र रूप में विराजमान थे। ज्यों ही पांडा प्रभु के निकट आया तो परमेश्वरउठ कर चल पड़े तथा कहा हे पांडा मैं तो अछूत हूँ मेरे से दूर रहना, कहीं आप अपवित्रा नहो जायें। पांडा निकट पहूँचा, परमेश्वर और आगे चल पड़े। तब पांडा फूट-फूट कर रोने लगातथा कहा परवरदीगार मेरा दोष क्षमा कर दो। तब दयालु प्रभु रूक गए। पांडे ने आदर के साथ एक स्वच्छ वस्त्रा जमीन पर बिछा कर प्रभु को बैठने की प्रार्थना की। प्रभु उस वस्त्रा पर बैठ गए।तब उस पांडे ने स्वयं चरण धोए तथा चरणामृत को पात्रा में वापिस डाल लिया। प्रभु कबीर जीने कहा पांडे चालीस दिन तक इसे पीना भी तथा स्नान करने वाले जल में कुछ डाल कर स्नान करते रहना। चालीसवें दिन तेरा कुष्ट रोग समाप्त होगा तथा कहा कि भविष्य में भी इस जगन्नाथ जी के मन्दिर में किसी ने छूआछात किया तो उसको भी दण्ड मिलेगा। सर्व उपस्थित व्यक्तियों ने वचन किए कि आज के बाद इस पवित्रा स्थान पर कोई छुआ-छात नहीं की जायेगी।
अदभुत रहस्य जगन्नाथ पुरी का |
विचार करें :-
हिन्दुस्तान का एकमात्रा ऐसा मन्दिर है जिसमें प्रारम्भ से ही छूआ-छात नहीं रही है।
जगन्नाथ पुरी के पूरे प्रकरण को जानने के लिए अवश्य देखे संत रामपाल जी महाराज के सुप्रसिद्ध चैंनलों पर सत्संग।
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