Wednesday, July 15, 2020

नाग पूजा कितनी लाभ दायक है?

नाग पंचमी क्यों बनाई जाती है।
हिन्दू धर्म में सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी का विशेष महत्व है। आदि काल से ही इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है और नागों को दूध पिलाया जाता है। इस दिन लोग नाग देवता के दर्शन को शुभ मानते हैं। ऐसी मान्यता है के इस दिन नाग देवता की पूजा करने से और उसे दूध पिलाने ने सारे बुरे प्रभाव दूर हो जाते हैं और नाग का भय भी दूर हो जाता है। नाग पंचमी की पूजा के प्रमाण हड़प्पा संस्कृति की पुरातत्व विभाग की खुदाई में भी मिले हैं।


हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार पृथ्वी को नागदेवता अपने सिर पर रखे हुए हैं। नाग देवता की पूजा का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। नाग देवता की पूजा करने से कई प्रकार के कुंडली में होने वाले दोषों से बचा जा सकता है। इसके लिए नागदेवता की पूरी विधि विधान से पूजा करनी चाहिए।

नागपंचमी के दिन ऐसे करें पूजा

इस दिन नागदेव के दर्शन अवश्य करना चाहिए। नाग देवता की बांबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करना चाहिए। नागदेवता पर दूध चढ़ा सकते हैं। उन्हें सुगंधित पुष्प व चंदन से ही पूजा करनी चाहिए। सर्वप्रथम सुबह जल्दी उठ कर स्नान करके नए वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके पश्चात दीवार पर गोबर से पंचमुखी सांप बनाया जाता है। कुछ जगह गोबर के स्थान पर सोने चांदी तथा काठ की कलम से चन्दन की स्याही से पंचमुखी बना inया जाता है। इसी स्थान पर फिर दूध, चावल तथा पुष्प चढ़ाये जाते हैं और भोग लगाया जाता है। कुछ जगह लोग सांप के रहने के स्थान बांबी पर दूध चढ़ाया जाता है। तत्पश्चात नाग देवता की पूजा करके आरती की जाती है। सभी प्रकार के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए ॐ कुरुकुल्ये हूँ फट स्वाहा का जाप किया जाता है।
Naag pooja
नाग पंचमी की पूजा

काल सर्प का निवारण-

हमारे देश में विज्ञान के साथ-साथ अध्यात्म का भी अहम स्थान है। ऐसा माना जाता है के जिनकी कुंडली में काल सर्प दोष होता है उनको जीवन में नाग पंचमी की पूजा अवश्य करवानी चाहिए। इससे दोष भी दूर हो जाता है और जीवन में आने वाले अन्य विघ्न भी दूर हो जाते हैं। शिव पुराण में कहा गया है कि काल सर्प दोषयुक्त कुंडली वाला व्यक्ति यदि नागपंचमी पर नाग की पूजा करें और शिवजी पर सहस्राभिषेक करें तो सर्वमनोकामना सिद्धि प्राप्त होती है। एक और जहाँ पश्चिम बंगाल और ओड़िसा में इस दिन नाग देवी माँ मनसा की पूजा की जाती है वहीँ दूसरी और इस दिन केरला में नाग देवता की पूजा के साथ-साथ माँ सरस्वती की भी पूजा होती है। नाग पंचमी मुख्यतः मध्य,दक्षिण और पूर्वी भारत का प्रसिद्ध त्यौहार है।

नाग की पूजा करना  किसी भी धर्म ग्रन्थ में नही है ये मनमाना आचरण बताया गया है।
गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23 ,24 में कहा गया जो साधक शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करता है उसको न तो गति मिलती है और न ही कोई सुख शांति प्राप्त होती है और न ही मोक्ष मिलता है।फिर 24  में कहा गया है है अर्जुन  कर्तव्य और अकर्तव्य  की व्यवस्था में  शास्त्र ही प्रमाण है अथवा जो शास्त्रों में लिखा हुआ है वही कर।
नाग पंचम की साधना
सही भक्ति विधि साधना


गीत अध्याय 9 श्लोक 25 में कीलयर कहा गया है कि  देवताओ को पूजने वाले देवताओ  को प्राप्त होते हैं पितरो की पूजा करने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं और भूतो की पूजा करने वाले भूतो को प्राप्त होते हैं   और मेरी भक्ति करने वाले  मुझे प्राप्त होंगे।(21  ब्रमांड का स्वामी काल भगवान अथवा तीनो देवताओ का पिता  ज्योति निरंजन कह रहा है)

‘‘गीता ज्ञान देने वाले ने अपनी भक्ति से होने वाली गति को अनुत्तमयानि घटिया क्यों कहा?’’ गीता अध्याय 7 श्लोक 16 से 18 तक पवित्रा गीता जी के बोलने वाले (ब्रह्म) काल प्रभु नेकहा कि मेरी भक्ति (ब्रह्म साधना) भी चार प्रकार के साधक करते हैं। एक तो अर्थार्थी (धन लाभचाहने वाले) जो वेद मंत्रों से ही जंत्रा-मंत्रा, हवन आदि करते रहते हैं। दूसरे आर्त्त (संकट निवार्ण केलिए वेदों के मंत्रों का जंत्रा-मंत्रा हवन आदि करते रहते हैं) तीसरे जिज्ञासु जो परमात्मा के ज्ञान कोजानने की इच्छा रखने वाले केवल ज्ञान संग्रह करके वक्ता बन जाते हैं तथा दूसरों में ज्ञानवान बनकर अभिमानवश भक्ति हीन हो जाते हैं, चौथे ज्ञानी। वे साधक जिनको यह ज्ञान हो गया कि मानव शरीर बार-बार नहीं मिलता, इससे प्रभु साधना नहीं की तो जीवन व्यर्थ हो जाएगा। उन्होंने वेदों को पढ़ा, जिनसे ज्ञान हुआ कि (ब्रह्मा-विष्णु-शिवजी) तीनों गुणों व ब्रह्म (क्षर पुरुष) तथा परब्रह्म (अक्षर पुरुष) से ऊपर पूर्ण ब्रह्म की ही भक्ति करनी चाहिए, अन्य प्रभुओं की नहीं।
सही भक्ति विधि
मनमाना आचरण

उन ज्ञानी उदार आत्माओं को मैं (काल ब्रह्म) अच्छा लगता हूँ तथा मुझे वे इसलिए अच्छे लगते हैं कि वेतीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिवजी) से ऊपर उठ कर मेरी (ब्रह्म) साधना तोकरने लगे जो अन्य देवताओं से अच्छी है परन्तु वेदों में ‘ओ3म्‘ नाम जो केवल ब्रह्म की साधना कामंत्रा है। उन ज्ञानी आत्माओं ने उसी को आप ही विचार - विमर्श करके पूर्ण ब्रह्म का मंत्रा जान करवर्षों तक साधना करते रहे। प्रभु प्राप्ति हुई नहीं। अन्य सिद्धियाँ प्राप्त हो गई। क्योंकि पवित्रा गीताअध्याय 4 श्लोक 34 तथा पवित्रा यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्रा 10 में वर्णित तत्वदर्शी संत नहीं मिला, जो पूर्ण ब्रह्म की साधना तीन मंत्रा से बताता है। इसलिए ज्ञानी भी ब्रह्म (काल) साधना करके जन्म-मृत्यु के चक्र में ही रह गए क्योंकि गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में गीता ज्ञान देने वाले ने कहाकि मैं काल हूँ। श्लोक 47.48 में कहा कि यह मेरा वास्तविक रूप है जिसको तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा है। मैंने तेरे पर अनुग्रह करके दर्शन दिए हैं। मेरे इस स्वरूप का दर्शन यानि काल ब्रह्म की प्राप्ति न तो वेदों का अध्ययन करने से, न यज्ञ यानि धार्मिक अनुष्ठान करने से, नदान से, न अन्य आध्यात्मिक क्रियाओं से, न उग्र तपों से हो सकती है यानि मैं देखा नहीं जा सकता हूँ। तेरे अतिरिक्त किसी को किसी भी साधना से मेरे दर्शन नहीं हो सकते। भावार्थ है किवेदों में वर्णित साधना से परमात्मा प्राप्ति नहीं होती।

गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता ने  कहा है कि उस ज्ञान की परमात्मा  अपने मुख कमल से बोलकर सुनाता है जो तत्वज्ञान है उसको तत्वदर्शी   संतो के पास जाकर समझ उनको दवडवत प्रमाण  करने से कपट छोड़कर नम्रतापूर्वक प्रश्न करने से तत्वदर्शी संत तुजे तत्वज्ञान का उपदेश करेगे।

 Change yug
सत भक्ति करने से होगा महान परिवर्तन

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नाम कौन से राम का जपना है ?

गीता जी के अध्याय नं. 15 का श्लोक नं. 16

द्वौ, इमौ, पुरुषौ, लोके, क्षरः, च, अक्षरः, एव, च, क्षरः, सर्वाणि, भूतानि, कूटस्थः, अक्षरः, उच्यते।।

अनुवाद: इस संसारमें दो प्रकारके भगवान हैं नाशवान और अविनाशी और ये सम्पूर्ण भूतप्राणियोंके शरीर तो नाशवान और जीवात्मा अविनाशी कहा जाता है।

गीता जी के अध्याय नं. 15 का श्लोक नं. 17

 उतमः, पुरुषः, तु, अन्यः, परमात्मा, इति, उदाहृतः, यः, लोकत्रायम् आविश्य, बिभर्ति, अव्ययः, ईश्वरः।।

अनुवाद: उत्तम भगवान तो अन्य ही है जो तीनों लोकोंमें प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है एवं अविनाशी परमेश्वर परमात्मा इस प्रकार कहा गया है।

कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड़ है, निरंजन वाकी डार।
त्रिदेवा (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) शाखा भये, पात भया संसार।।
कबीर, तीन देवको सब कोई ध्यावै, चौथा देवका मरम न पावै।
चौथा छांडि पँचम ध्यावै, कहै कबीर सो हमरे आवै।।
कबीर, तीन गुणन की भक्ति में, भूलि पर्यौ संसार।
कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरै पार।।
कबीर, ओंकार नाम ब्रह्म (काल) का, यह कर्ता मति जानि।
सांचा शब्द कबीर का, परदा माहिं पहिचानि।।
कबीर, तीन लोक सब राम जपत है, जान मुक्ति को धाम।
रामचन्द्र वसिष्ठ गुरु किया, तिन कहि सुनायो नाम।।
कबीर, राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नाहीं संसार।
जिन साहब संसार किया, सो किनहु न जनम्यां नारि।।
कबीर, चार भुजाके भजनमें, भूलि परे सब संत।
कबिरा सुमिरै तासु को, जाके भुजा अनंत।।
कबीर, वाशिष्ट मुनि से तत्वेता ज्ञानी, शोध कर लग्न धरै।
सीता हरण मरण दशरथ को, बन बन राम फिरै।।
कबीर, समुद्र पाटि लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार।।
कबीर, गोवर्धन कृष्ण जी उठाया, द्रोणागिरि हनुमंत।
शेष नाग सब सृष्टी उठाई, इनमें को भगवंत।।
गरीब, दुर्वासा कोपे तहां, समझ न आई नीच।
छप्पन कोटि यादव कटे, मची रूधिर की कीच।।
कबीर, काटे बंधन विपति में, कठिन किया संग्राम।
चीन्हों रे नर प्राणियां, गरुड बडो की राम।।
कबीर, कह कबीर चित चेतहू, शब्द करौ निरुवार।
श्री रामचन्द्र को कर्ता कहत हैं, भूलि पर्यो संसार।।
कबीर, जिन राम कृष्ण निरंजन किया, सो तो करता न्यार।
अंधा ज्ञान न बूझई, कहै कबीर बिचार।।
कबीर, तीन गुणन (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की भक्ति में, भूल पड़यो संसार।
कहै कबीर निज नाम बिना, कैसे उतरो पार।।

शास्त्र अनुसार भक्ति
मनमाना आचरण करने से मोक्ष नही हो सकता

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